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सख्ती के अलावा और कोई उपाय नहीं

14_04_2017-13vivek_katjuपाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 11 अप्रैल को पाकिस्तानी संसद को बताया कि मौत की सजा पाए भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव के पास सजा के खिलाफ अपील करने के लिए 60 दिन का समय है। जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने 10 अप्रैल को मौत की सजा सुनाई थी जिस पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा ने तुरंत अपनी मुहर लगाई। रक्षा मंत्री आसिफ ने यह भी कहा कि जाधव पाकिस्तानी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका भी लगा सकते हैं। यह इस बात का संकेत है कि जाधव को फांसी देने में पाकिस्तान कोई जल्दबाजी नहीं दिखाएगा।

जाधव को सजा पर भारत की सख्त प्रतिक्रिया और संसद के दोनों सदनों में दिखाए गए आक्रोश ने निश्चित रूप से पाकिस्तानी मंत्री को अपना रुख स्पष्ट करने पर मजबूर किया होगा। पाकिस्तान इससे अच्छी तरह वाकिफ होगा कि भारतीय संसद इस मसले पर देश में पनप रहे गुस्से को ही प्रतिध्वनित कर रही है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यह कहकर अच्छा ही किया कि अगर पाकिस्तान इस सजा को अमल में लाता है तो द्विपक्षीय रिश्तों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। भारत के दबाव के समक्ष पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना प्रमुख बाजवा की न झुकने वाली खबरों में कुछ भी हैरान करने वाला नहीं। यह अपेक्षा के अनुरूप और पाकिस्तानी अवाम को संदेश देने के लिए है।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जाधव को सजा सुनाने के लिए पाकिस्तान ने यही समय क्यों चुना? संभव है कि इसकी कड़ियां नेपाल के लुंबिनी में पाकिस्तानी फौज के पूर्व अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल मुहम्मद हबीब जहीर की गुमशुदगी से जुड़ी हों। पाकिस्तानी मीडिया दावा कर रहा है कि इस अधिकारी को भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने नौकरी की पेशकश के जरिये अपने जाल में फंसाया। उसका आरोप है कि भारतीय एजेंसियां किसी पाकिस्तानी अफसर की फिराक में थीं ताकि वे पाकिस्तान में कैद जाधव की काट तैयार कर सकें। पाकिस्तान हबीब जहीर के अपहरण का आरोप इसीलिए लगा रहा है, क्योंकि उसने भी जाधव का अपहरण ही किया था, जो ईरान में कारोबार कर रहे थे। जाधव को सजाए मौत सुनाने के पीछे पाकिस्तान ने यही सोचा होगा कि ऐसा करके वह भारतीय एजेंसियों को शिथिल कर देगा। उसने भारत में इतनी कड़ी प्रतिक्रिया का अनुमान भी नहीं लगाया होगा। उसे यह अहसास होना चाहिए था कि वह एक खतरनाक खेल खेल रहा है। इतिहास ऐसी तमाम मिसालों से भरा है जब पाकिस्तान ने रणनीतिक एवं नीतिगत मोर्चे पर बड़ी गलतियां कीं। चाहे आजादी के तुरंत बाद 1947 में कश्मीर में कबीलाई घुसपैठियों को भेजना हो या 1965 में घुसपैठियों को भेजकर आक्रमण करना जिसका भारत ने करारा जवाब दिया था या फिर 1999 में जनरल मुशर्रफ द्वारा करगिल में कुछ चौकियों पर कब्जा करना हो- इन सभी में पाकिस्तान को मुंह की ही खानी पड़ी।
संसद में सुषमा स्वराज का बयान यही दर्शाता है कि मार्च, 2016 में जब पहली बार एक वीडियो के जरिये यह दिखाया गया था कि जाधव पाकिस्तानी फौज की कैद में हैं तबसे ही दोनों देश इस मसले पर एक दूसरे के संपर्क में रहे। बीते 13 महीनों में भारत ने पाकिस्तान से 13 बार निवेदन किया कि जाधव को दूतावास संबंधी मदद यानी काउंसलर एक्सेस सुनिश्चित की जाए। किसी देश में कैद किसी अन्य देश के नागरिक को ऐसी सुविधाएं मिलनी लगभग तय होती हैं। सुषमा स्वराज के अनुसार पाकिस्तान इस शर्त पर राजी हुआ कि भारत इस मामले में जांच के लिए सुबूत और सामग्री उपलब्ध कराने में मदद करे। पाकिस्तान ने कुछ वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों को भी लपेट लिया। उसमें भारत का जोर इसी पर था कि उसे जाधव तक पहुंचने के लिए काउंसलर एक्सेस की जरूरत होगी ताकि यह समझा जा सके कि वह किन हालात में पाकिस्तान पहुंचे। ऐसा रुख तभी उपयोगी होता जब पाकिस्तान ने तार्किक रवैया अपनाया होता। सच यह है कि जाधव मामले में पाकिस्तान का मकसद पूरी दुनिया को यह दिखाना है कि बलूचिस्तान और कराची में दिक्कतें पैदा कर भारत पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है। उसने जाधव को जासूस और आतंकी करार देकर दुष्प्रचार किया कि वह हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे थे। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी अब भारत में आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में पाकिस्तानी भूमिका को मानने लगी है।

जाधव मामले के जरिये पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को यह विश्वास दिलाना चाहता था कि भारत भी उसके साथ वही कर रहा है। इस सबके बावजूद किसी ने भी पाकिस्तान के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया। इसने पाकिस्तान को निराश जरूर किया, लेकिन उसने अपनी कोशिशें नहीं छोड़ीं। सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में आश्वस्त किया कि सरकार जाधव के लिए बेहतरीन वकील मुहैया कराएगी। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर जरूरी हुआ तो भारत पाकिस्तानी राष्ट्रपति से भी बात करेगा, लेकिन तथ्य यह है कि जाधव मामले में पाकिस्तानी सेना ही हावी है। चूंकि भारत के प्रति पाकिस्तान की नीतियों का निर्धारण सेना करती है लिहाजा पाकिस्तानी अदालतों से जाधव को इंसाफ मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। पाकिस्तान जाधव को भारतीय नौसेना के सेवारत अधिकारी के तौर पर देख रहा है और इसीलिए वह उनके मामले को सैन्य अदालत में ले गया। जाहिर है कि राष्ट्रपति और पाकिस्तानी सरकार भी सेना के कहे को ही मानेगी। ऐसे में भारत को इस मामले में पाकिस्तानी सेना के साथ निपटना होगा। इतिहास गवाह है कि सख्ती और जैसे को तैसा वाली नीति ही पाकिस्तानी सेना से निपटने का इकलौता तरीका है। हालांकि पाकिस्तानी सेना जनता की भावनाएं भड़काकर इसे जटिल बना रही है, फिर भी उसके प्रति सख्ती वाली नीति की ही दरकार है। ध्यान रहे कि जाधव को सजा के फैसले पर पाकिस्तानी सेना प्रमुख की मुहर लगने और इस सिलसिले में सेना के जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी किए जाने के बाद वहां के अधिकांश टिप्पणीकारों ने इस पर जोर देना शुरू किया कि इस फैसले को अमल में लाया जाना चाहिए। कुछ चुनिंदा आवाजें ही थीं जिन्होंने इस बात को लेकर चेताया कि पाकिस्तान को जल्दबाजी की कीमत चुकानी पड़ सकती है।
भारत को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान ने अपने अफगानी गुर्गों के जरिये काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमला कराया था। इस हमले में भारतीय सेना के एक अधिकारी और एक राजनयिक की मौत हो गई थी। इसके बाद अन्य भारतीय ठिकानों को भी निशाना बनाया गया जिसमें जान-माल का और ज्यादा नुकसान हुआ। चूंकि तत्कालीन सरकार ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की इसलिए पाकिस्तान का दुस्साहस और अधिक बढ़ा। पाकिस्तान कोे सही संकेत देने के लिए उसके खिलाफ सख्त कदम उठाने ही होंगे। वैसे भी रक्षात्मक रुख अपनाने वाले देशों को केवल नुकसान ही उठाना पड़ता है।

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