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शासन की सुगबुगाहट से परेशान महबूबा पहुची मोदी से मिलने

जम्मू/श्रीनगर :  कश्मीर के हालात दिन ब दिन बद से बद्तर होते जा रहे हैं और इस संकट को संभालने को लेकर राज्य में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच टकराव चरम सीमा की ओर बढ़ रहा है। तो क्या समस्याग्रस्त राज्य राज्यपाल शासन की ओर बढ़ रहा है?

भाजपा के कोर समूह द्वारा 19 अप्रैल को कश्मीर घाटी के कानून-व्यवस्था की समीक्षा करने तथा राज्यपाल शासन के विकल्प पर चर्चा करने के मद्देनजर, प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती 23 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान घाटी में वर्तमान संकट पर चर्चा कर सकती हैं।

बाद में, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक और बैठक हुई जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तथा सेना प्रमुख बिपिन रावत शामिल हुए।

राज्य में राज्यपाल शासन की सुगबुगाहट ने पीडीपी को परेशान कर दिया है।

पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर घटना की संवेदनशीलता बयां करते हुए आईएएनएस से कहा, “यह ठीक नहीं है। हम संयुक्त मुद्दे पर साथ हुए थे और बेहतर होता कि भाजपा मीडिया के माध्यम से बात न करके हमसे सीधे बात करती। उम्मीद है कि मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री की मुलाकात के बाद शंका के बादल छटेंगे।”

भाजपा शासित राज्यों या जिन राज्यों में भाजपा सत्ताधारी गठबंधन में शामिल है, वहां के मुख्यमंत्रियों की दिल्ली में बैठक के दौरान मुख्यमंत्री दिल्ली में होंगी। पता चला है कि कि उन्होंने मोदी के साथ अलग से बैठक की मांग की है, जिसमें वह उनसे कश्मीर के हालात पर चर्चा करेंगी।

गठबंधन के घटकों के बीच ताजा तनाव एमएलसी चुनाव में पीडीपी खेमे के माने जा रहे जांस्कार विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक बाकिर रिजवी द्वारा भाजपा उम्मीदवार को वोट देने से पैदा हुआ है।

पीडीपी ने इसे पीठ में छुरा घोंपना बताया और इसके विरोध स्वरूप उन्होंने विधानपरिषद के नवनिर्वाचित सदस्यों के जम्मू में हुए शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लिया। महबूबा ने भी निर्दलीय विधायक द्वारा क्रॉस वोटिंग पर अपनी नाराजगी भाजपा के हाईकमान से जताई।

पीडीपी नेतृत्व का मानना है कि रिजवी को भाजपा ने चतुरतापूर्वक अपने पाले में कर लिया।

इसके बाद एक बयान में भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा उद्योग मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा ने जम्मू में कहा कि पत्थरबाज राष्ट्र-विरोधी हैं और उनके खिलाफ गोलियों का इस्तेमाल होना चाहिए।

पीडीपी के उपाध्यक्ष सरताज मदनी ने इसे ‘धमकाने वाला और घातक’ करार दिया। उन्होंने कहा कि मंत्री ने मंत्रिमंडल के फैसले का उल्लंघन किया, जिसने हाल में घाटी में लोगों की मौत पर पीड़ा जताई थी।

भाजपा-पीडीपी के बीच जुबानी जंग गुरुवार को तब और तेज हो गई, जब भाजपा के महासचिव तथा जम्मू एवं कश्मीर मामलों के प्रभारी राम माधव ने बडगाम जिले में पत्थरबाजों को पत्थर चलाने से रोकने के लिए सेना द्वारा जीप के आगे एक कश्मीरी को बांधकर घुमाए जाने की घटना को न्यायोचित करार दिया।

माधव ने कहा कि सेना की इस कार्रवाई ने कई लोगों की जानें बचाई, क्योंकि प्रदर्शनकारियों की संख्या जवानों से अधिक थी। दूसरा विकल्प गोली चलाना होता, जिसका इस्तेमाल करने से परहेज किया गया।

माधव ने यहां तक कहा, “प्रेम और युद्ध में सब जायज है।”

ताकत दिखाने के लिए पुलवामा जिले में पिछले सप्ताह एक कॉलेज में सुरक्षा बलों के घुसने के बाद छात्रों के हंगामे के बीच तमाम घटनाक्रम सामने आए हैं। सोशल नेटवर्किं ग वेबसाइटों पर पोस्ट किए गए वीडियो में कॉलेज परिसर के भीतर सुरक्षाकर्मी छात्रों को पीटते दिखाई दे रहे हैं।

पुलवामा की घटना के तत्काल बाद घाटी के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों व स्कूलों में छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा। बीते चार दिनों से इन संस्थानों में पठन-पाठन कार्य निलंबित हैं, इसके अलावा घाटी में मोबाइल इंटरनेट सेवा भी निलंबित है।

ऐसे हालात में महबूबा खुद को किंकर्तव्यविमूढ़ महसूस कर रही हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री के कर्तव्यों का वहन करना है, तो दूसरी तरफ कश्मीरियों के प्रति समर्थन भी दर्शाना है और परिस्थितिवश दोनों एक दूसरे के परस्पर विरोधी हो जा रहे हैं।

वहीं, दक्षिणपंथी विचारधारा वाली भाजपा को लग रहा है कि अगर उसने पत्थरबाजों के प्रति नरमी दिखाई, तो उसकी घोर राष्ट्रवादी छवि को जम्मू के साथ ही देश भर में धक्का पहुंचेगा।

ऐसे हालात में क्या भाजपा तथा पीडीपी का सरकार में एक दूसरे के साथ रहना संभव हो पाएगा?

बहरहाल, अगर वर्तमान घटनाक्रम पर नजर डालें, तो लगता नहीं कि जम्मू एवं कश्मीर में गठबंधन सरकार की निरंतरता बरकरार रह सकती है।

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