कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘आज हमारे पास बहुत से कार्ड हैं जिससे कई जटिलताएं पैदा होती हैं। प्रणाली में इतनी सारी जटिलताएं उत्पन्न न करें। समय आ गया है कि हमें केवल एक कार्ड पर विचार करना चाहिए, वह कार्ड चाहे जो भी हो।’
उन्होंने कहा, ‘पहचान का प्रमाण आधार कार्ड हो सकता है, जब आप इसका इस्तेमाल अन्य सभी कार्य के लिए कर रहे हैं।’ कृष्णमूर्ति ने कहा कि अकेले आधार को मतदाता पहचान पत्र बनाया जा सकता है।
आप मतदाता पहचान पत्र और साथ ही साथ आधार कार्ड क्यों रखना चाहते हैं? अगर सभी मतदाता आधार से जुड़ जाते हैं, तो आप मतदाता पहचान पत्र को समाप्त कर सकते हैं और आधार को मतदान कार्यों के लिए एकमात्र पहचान पत्र बनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि जब तक देश में हर नागरिक का आधार कार्ड नहीं बन जाता तब तक मतदान के लिए दोनों कार्डों को मान्यता दी जा सकती है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने इस कार्य के लिए समय सीमा तय करने का सुझाव दिया, जो वर्ष 2019 अथवा 2020 हो सकती है।
कृष्णमूर्ति ने कहा कि चुनाव आयोग को हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव की घोषणा को अलग-अलग करने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि इस विवाद को टाला जा सकता था।