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मानवाधिकार की परिधि सशत्र-बलों के लिए सीमित है, इसे समझना आवश्यक :न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह

लखनऊ:

 ए.ऍफ़.टी. बार एसोसिएशन, लखनऊ ने ‘मानवाधिकार एवं सशत्र-बल’ पर आयोजित सेमीनार में न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दो घटनाएँ पहली मणिपुर और दूसरी कश्मीर में हुईं जिनमें सेना के विरुद्ध मानवाधिकार का मामला गम्भीरता से उठा जिसमें भारत सरकार को उपयुक्त न्यायिक सहायता के अभाव में सेना और मानवाधिकार की सीमा की उचित व्याख्या नहीं हो सकी जबकि संविधान के अनुच्छेद 33 से 35 एवं भारतीय दंड संहिता के भाग-4 की धारा-79 से 81 में युक्ति-युक्त आधार पर सेना की कार्यशैली को मानवाधिकार के नाम पर अनुचित ठहराए जाने से छूट प्राप्त है, अधिवक्ता समाज के सामने बड़ी चुनौती है कि वह कानूनी पक्ष को न्यायालय के सामने रखे अन्यथा भविष्य में बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि राजनितिक निर्णयों की त्रुटियों का प्रभाव तात्कालिक रूप से दिखने लगता है जबकि न्यायिक निर्णयों की त्रुटियां लम्बे समय बाद दिखती हैं जब समाज उसकी बहुत बड़ी कीमत चुका लेता है l

  • अध्यक्ष डा.चेत नारायण सिंह ने कहा कि सेना बहुत विषम परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है लिहाजा उसको मानवाधिकार के नाम पर प्रभावित करने की मनोवृत्ति से बचने की आवश्यकता है|
  • बार के महामंत्री विजय  कुमार पाण्डेय ने विचार रखते हुए कहा कि मानवाधिकार देश की सम्प्रभुता में आस्था एवं विश्वास व्यक्त करने वाले लोगों का होता है न कि देश की सेना और देश की एकता को खंडित करने के लिए कार्य कर रहे हैं विगत में भारतीय सेना के अमानवीय चरित्र को दुनिया के सामने रखने की जिस तरह कोशिश हुई गलत है |
  • विजय पाण्डेय ने कहा कि भारत की सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ अनुशासित और मानवीय कर्तव्यों का निर्वहन करने वाली सेना है इसलिए उस पर मानवाधिकार के नाम पर दबाव बनाने की जरूरत नहीं हैं वरना देश की सीमाओं में परिवर्तन होने में समय नहीं लगेगा |
  • वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व महामंत्री डी.एस.तिवारी ने कहा कि हमारे सशत्र-बल देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं इसलिए उनके मामले में मानवाधिकार को सिमित सन्दर्भों में ही ग्रहण करने की आवश्यकता है|
  • बार के विद्वान सदस्य कर्नल वाई.आर.शर्मा ने कहा कि हमारी सेनाएं किसी भी आपरेशन में जिन चुनौतियों का सामना करती हैं उसे बाहर से समझ पाना नामुमकिन है क्योंकि दुश्मन से संघर्ष में भाषा, भौगोलिक ज्ञान, दुश्मन और दोस्त की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल होता है ऐसे में हमारी न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि मानवाधिकार की आड़ में विरोधी ताकतें सेना के मनोबल को कमजोर करने में लग जाती हैं|
  • इस कार्यक्रम में आर चन्द्रा, आर के सिंह, के के शुक्ला, संयुक्त सचिव पी के शुक्ला, उपाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह, पारिजात मिश्रा, अनुराग मिश्रा, कविता मिश्रा, कविता सिंह, विनय पाण्डेय एवं शमशाद आलम ने भी अपने विचार रखे l