पिछले तीन-चार दशक में समय तेजी से बदला है। महिलाओं की दुनिया भी बहुत बदल गई है लेकिन यह भी सच है कि कुछ मूल्य कभी नहीं बदलते। मां की नसीहतें भी कमोबेश वही होती हैं सिर्फ समय के साथ उनमें कुछ और नसीहतें जुड़ जाती हैं और विदाई के बाद से जैसे मां की एक-एक बातें याद आती जाती हैं, जिन पर शायद पहले इतना गौर नहीं किया गया हो। फिर अक्सर यही कहने में आता है कि मां कहती हैं
- तुम्हारा ससुराल ही अब तुम्हारा घर है। वहां की परंपराएं, रीति-रिवाज तुम्हें अपनाने होंगे। शुरू में थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन धीरे-धीरे तुम उस परिवेश में ढल जाओगी।
- शिक्षा हमेशा विनम्रता सिखाती है, इसलिए इसे कभी अहं का कारण मत बनने देना। लड़कियों के कंधों पर दो परिवारों का दारोमदार होता है, खुद को हर स्थिति के लिए मजबूत बनाना और दोनों कुल का मान बनाए रखना।
- दो घरों के फर्क को हमेशा समझना। कभी भी मायके और ससुराल के बीच तुलना मत करना।
- सास कुछ भी कहे, यह न सोचना कि मैं पढ़ी-लिखी सक्षम हूं, क्यों दबूं? हर रिश्ते में थोड़ा झुकना पड़ता है। इसलिए हमेशा एक-दूसरे के साथ मिलकर रहने की कोशिश करना।
- अहं छोड़ते हुए यदि एक-दूसरे को माफ करने का गुण सीख लो तो दांपत्य के लिए अच्छा है। यह केवल लड़की के लिए ही नहीं लड़के के लिए भी सीख है।
- ससुराल में सबसे मिलकर रहना और दोनों परिवारों का मान रखना ही सबसे बड़ी बात है। बड़े-बुजुर्ग कुछ भी कहें, उनकी बात हमेशा सुनना और उन्हें कभी पलटकर जवाब मत देना। अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लेना।
- किसी भी स्थिति में धैर्य कभी मत खोना, धीरे-धीरे सारे काम आ जाएंगे और बड़े कुछ सिखाएं तो सीखना। हमेशा अपने परिवार को पहली प्राथमिकता देना।
- हालांकि आज के बदलते परिवेश में मां अपनी बच्चियों को स्वयं की रक्षा और कभी गलत बात न सहना की शिक्षा भी देती हैं, जो बहुत जरूरी है। सामंजस्यता तो ठीक है लेकिन समय आने पर आत्मनिर्भर होने के लिए पढ़ाई से लेकर हर ज्ञान भी जरूरी है।