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मनुष्‍य जन्‍म से अपराधी नही होता

मोरारी बापू ने कहा कि आदमी तीन प्रकार के अपराध करता है एक आदतवश, दूसरा अनचाहा तथा तीसरा मुढ़ता के कारण। उन्होने कहा कि अगर आदमी की मानसिकता सत्य की उपासना वाली हो तो परमात्मा सभी मजबूरियां मिटा देता है।

अपराध

असत्य आता है तो प्रेम का प्रवाह अवरूद् हो जाता है। बापू ने कहा कि पैसा और लक्ष्मी में बडा अन्तर होता है। ऐसा धन जिसे परसेवा में बांटने में कष्ट होता हो वो पैसा होता है और ऐसा धन जिसे जनसेवा में खुलकर लगाया जाए वो लक्ष्मी का रूप होता है।

बापू ने पर्यावरण को इंगित करते हुए कहा कि हर एक वृक्ष व वनस्पति नारायण का रूप है इसलिए आदमी को खूब पेड़ लगाकर चारों तरफ पेड़ लगाने चाहिए। प्रेम आग है, सूर्य जलाता है पर दूर है, चांद भी शीतलता देता है पर दूर है पर प्रेम हमारे अंदर है।

 परमात्मा सब जगह समान रूप से व्याप्त है। वह केवल प्रेम से प्रकट हो सकता है। जो होता है वही प्रकट होता है। कौशल्या के महल में परमात्मा का प्रकटन था इसलिए भय प्रकट कृपाला। प्रेम हम सभी में है जैसे आत्मा, मन, बुद्धि, अहंकार, ज्ञान, आनंद, परमात्मा सब में है।

उसी तरह प्रेम भी सब में है। सारा संसार प्रेम से बना है। प्रेम इक्कीस वीं सदी का मूल मंत्र है। उन्होंने चेताया कि यहां प्रेम की वार्ता हो रही है वासना की नहीं, उपासना की चर्चा है।

 

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