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भविष्य की झलक दिखाता फेरबदल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के फेरबदल में चौंकाया चाहे जितना हो पर आलोचना का ज्यादा मौका नहीं दिया। जो हटाए गए उनके जाने का किसी को गम नहीं होगा और जो आए उनके खिलाफ बोलने के लिए बहुत कम है। सिवाय ऐसी रवायती बातों के कि नौकरशाहों पर नेताओं से ज्यादा भरोसा किया। कहते हैं कि शतरंज का अच्छा खिलाड़ी वह नहीं जो अगली चाल पहले से सोच ले, बल्कि अच्छा खिलाड़ी वह होता है जो अगली कई चालें सोच ले। केंद्रीय मंत्रिमंडल के फेरबदल में कई संदेश हैं जो पार्टी और सरकार में शामिल लोगों के लिए हैं। पहला संदेश है कि काम करेंगे तो रहेंगे, नहीं तो बाहर जाने का दरवाजा खुला है। दूसरा यह कि क्षेत्र, जाति, धर्म का प्रतिनिधित्व तो ठीक है पर इनका नंबर योग्यता के बाद ही आता है। मंत्रिमंडल में परिवर्तन भले ही 2017 में हुआ हो, लेकिन नजर 2019 पर है। नए आने और तरक्की पाने वाले 2019 के बाद की तस्वीर की झलक हैं।

ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी मीडिया के सारे अनुमानों और कथित विश्वस्त सूत्रों को गलत साबित करने की कसम खाए हुए हैं। मीडिया जितने लोगो को मंत्री बना रहा था उनमें से सत्यपाल सिंह के अलावा कोई मंत्री नहीं बना। नए बनने वाले नौ मंत्रियों में चार पूर्व नौकरशाह हरदीप सिंह पुरी, आरके सिंह, सत्यपाल सिंह और केजे अल्फोंस हैं। चारों अपने सेवाकाल में अपनी कार्यकुशलता और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। आरके सिंह गाहे-बगाहे सरकार और पार्टी के खिलाफ बोलते रहे हैं। भगवा आतंकवाद के प्रतिपादकों में भी उनका नाम शामिल है, लेकिन यह सब उनके मंत्री बनने में बाधा नहीं बना। बाकी पांच पार्टी से काफी समय से जुड़े रहे हैं।

कर्नाटक के अनंत हेगड़े पांचवीं बार लोकसभा में पहुंचे हैं और अपने हिंदुत्ववादी तेवर के लिए जाने जाते हैं। वह ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और स्वयंसेवी समूहों के विकास में अपनी रुचि के लिए भी खूब जाने जाते हैं। बिहार के अश्विनी चौबे राजनीति और अपनी प्रशासनिक क्षमता के आधार पर सुपात्र कहे जाएंगे। वह ‘घर-घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाड़ली बिटिया का कन्यादान’ का नारा देने वाले और महादलित परिवारों में 11 हजार शौचालयों का निर्माण कराने के लिए भी जाने जाते हैं। मध्य प्रदेश के वीरेंद्र कुमार बाल श्रम पर पीएचडी हासिल कर चुके हैं। अपने अन्य सामाजिक कामों के अलावा वह युवकों को जाति के बंधन से आजाद होने की मुहिम चलाते हैं। राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत एक प्रगतिशील किसान हैं जो ग्रामीण भारत के लिए रोल मॉडल माने जाते हैं। वह सोशल मीडिया पर बहुत ही सक्रिय हैं। सादगी उनका राजनीतिक चोला नहीं, जीवन शैली है। उत्तर प्रदेश के शिव प्रताप शुक्ल अपनी किसी योग्यता से ज्यादा, गोरखपुर के जातीय समीकरण को साधने के मकसद से मंत्री बनाए गए हैं।

फेरबदल में जो छह मंत्री हटाए गए उनमें सबके हटने के कारण अलग-अलग हैं। दो मंत्रियों में से एक संजीव बालियान अपने मंत्रालय के काम के प्रति बहुत संजीदा न होने के कारण बाहर हुए हैं। दूसरे, राजीव प्रताप रूड़ी को शायद अक्षमता और हाई फाई जीवन शैली की सजा मिली है। अच्छी बात है कि उन्हें हवाई जहाज भी उड़ाना आता है। अब इसके लिए उनके पास काफी समय होगा। बिहार के ही योग्य, ईमानदार और उनके सजातीय लोकसभा सदस्य आरके सिंह का मंत्रिमंडल में आना रूडी के भविष्य का मार्ग दुरूह बनाएगा। इस फेरबदल में प्रधानमंत्री ने क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने पर सबसे कम और योग्यता, ईमानदारी नतीजा लाने वालों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। वरना कर्नाटक से एक ब्राह्मण अनंत कुमार के रहते दूसरे ब्राह्मण अनंत हेगड़े को मंत्रिमंडल में जगह न मिलती। 

योग्यता, ईमानदारी और निष्ठापूर्वक काम करने को किस तरह पुरस्कृत किया गया है, इसका उदाहरण निर्मला सीतारमण, धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल और मुख्तार अब्बास नकवी को मिली पदोन्नति है। इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला फैसला निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बनाने का है। अब वह कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की उस समिति में बैठेंगी जिसमें सरकार के केवल पांच मंत्री ही बैठ सकते हैं। वहां वे ऐसे लोगों के साथ बैठेंगी जो कुछ समय पहले तक उन्हें अपने साथ बैठाने को तैयार नहीं थे। यह सिर्फ किस्मत नहीं, मेहनत, ईमानदारी और जिम्मेदारी के प्रति निष्ठा का नतीजा है। आजादी के बाद पहली बार होगा कि सीसीएस में दो महिलाएं बैठेंगी। महिला सशक्तीकरण की दिशा में इसे बड़ी पहल माना जाना चाहिए। धर्मेंद्र प्रधान और पीयूष गोयल इस सरकार के पोस्टर ब्यॉय हैं। इन दोनों मंत्रियों ने तीन सालों वह किया है जो सरकारों के कामकाज की सामान्य गति से शायद एक दशक में भी नहीं हो पाता। पांच साल बीतते- बीतते धर्मेंद्र प्रधान का उपनाम उज्ज्वला हो जाए तो आश्चर्य नहीं।

केंद्रीय मंत्रिमंडल के फेरबदल में प्रधानमंत्री की कई कदम आगे की सोचने की रणनीति नजर आती है। 2014 में सरकार और पार्टी की कमान हाथ में आने के बाद उन्होंने एक पीढ़ी परिवर्तन किया था। जिसमें कई महारथी खेत रहे थे। मंत्रिमंडल का ताजा फेरबदल केवल 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर डिलिवरी पर जोर देने के लिए ही नहीं है। यह 2019 में बनने वाले (अगर बना तो) मंत्रिमंडल की झलक है। 2019 में एक और पीढ़ी परिवर्तन की प्रधानमंत्री ने तैयारी कर ली है। जो नए राज्यमंत्री बने हैं, खासतौर से स्वतंत्र प्रभार वाले, वे भविष्य के कैबिनेट मंत्री हो सकते हैं। शर्त एक ही है कि वे परफार्म करके दिखाएं। सीसीएस में निर्मला सीतारमण का आना उस स्तर पर भी बदलाव की शुरुआत हैं, अंत नहीं। दो युवा नेताओं रूडी और बालियान की सरकार से छुट्टी का एक और संदेश है कि केवल युवा होने से सरकार में जगह पाने और बने रहने की गारंटी नहीं है। 

मौजूदा मंत्रिमंडल के कई वरिष्ठ मंत्रियों को सीतारमण, प्रधान और गोयल की तरफ देखने की बजाय लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरफ देखना चाहिए। अब यह उन्हें तय करना है कि हटना चाहेंगे या हटाया जाना? इस पूरे फेरबदल में दो बातें खटकती हैं। एक जिन लोगों को सरकार में जगह मिली है वे तीन साल पहले भी उपलब्ध थे। उस समय उन्हें मौका क्यों नहीं दिया गया? पूर्व नौकरशाहों के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष यह देखना चाहते थे कि वे पार्टी में कैसे ढलते हैं, पर राजनीतिक लोगों के बारे क्या तर्क हो सकता है? वे सब लंबे समय से और संघर्ष के दिनों से पार्टी से जुड़े रहे हैं। दूसरी बात यह है कि अच्छा काम करने वालों को पुरस्कृत करने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी गई है, पर ऐसा नहीं है कि जो गए केवल वही अक्षम थे। ऐसे कई मंत्री हैं जो प्रधानमंत्री की ही बनाई कसौटी पर खरे नहीं उतरते। ऐसे लोगों के प्रति नरमी बरती गई है। इन लोगों को ग्रेस माक्र्स क्यों मिले, इसकी वजह समझना मुश्किल है।

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