पार्टी ने हार्दिक की छवि को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अमानत आंदोलन के उनके पांच सहयोगियों चिराग पटेल, केतन पटेल, रेशमा पटेल, अमरीश पटेल और श्वेता पटेल को तोड़ लिया है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपने पुराने सहयोगियों के बिना हार्दिक कांग्रेस को कोई लाभ पहुंचा पाएंगे? जाहिर तौर पर अब हार्दिक के समक्ष अपने दम पर चमत्कार दिखाने की चुनौती है।
इस बीच, भाजपा ने पाटीदारों में हार्दिक का प्रभाव खत्म हो जाने का संदेश देने के लिए न सिर्फ पाटीदार बिरादरी के प्रभाव वाले इलाकों में जोरदार रैलियां करने की रणनीति बनाई है, बल्कि टिकट पाने वाले पाटीदार उम्मीदवारों के नामांकन के दौरान जबरदस्त भीड़ इकट्ठा करने के भी निर्देश दिए हैं।
दरअसल, भाजपा की पाटीदार आंदोलन के दौरान हार्दिक को कमजोर करने की सभी कोशिशें नाकाम रही थी। इसी बीच हार्दिक और कांग्रेस की बढ़ती नजदीकी से बेचैन पार्टी के रणनीतिकारों ने पाटीदार अमानत आंदोलन के प्रमुख चेहरों को साधने की रणनीति बनाई।
चुनाव की घोषणा के बाद जब तक हार्दिक और कांग्रेस के बीच समझौता हुआ, तब तक भाजपा हार्दिक के पांच प्रमुख सहयोगियों को अपने पाले में कर चुकी थी।
पाटीदार इलाकों के लिए खास रणनीति
भाजपा और कांग्रेस के बीच 9 फीसदी मतों का अंतर रहा है। भाजपा को डर था कि अगर पार्टी का परंपरागत वोटर माने जाने वाले करीब 12 फीसदी पाटीदारों की नाराजगी बदस्तूर जारी रही तो चुनाव में उसे लेने के देने पड़ जाएंगे।
अब हार्दिक के सहयोगियों को साधने के बाद पाटीदारों को पार्टी के साथ बनाए रखने के लिए न सिर्फ पीएम मोदी की इनके प्रभाव वाले इलाकों में ताबड़तोड़ रैलियां होंगी, बल्कि इस बिरादरी के स्वजातीय नेता भी इन इलाकों में दिन रात एक करेंगे।