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बड़ीखबर: एक राष्ट्र एक चुनाव, सरकार को संसदीय समिति की रिपोर्ट का इंतजार

एक राष्ट्र एक चुनाव के मामले पर सरकार को संसदीय समिति के रिपोर्ट का इंतजार है। पीएम मोदी ने एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए वास्तविक स्थिति की पूरी जानकारी ली है। लंबे समय से मोदी एक राष्ट्र एक चुनाव की थ्योरी देते हुए देश के सभी चुनाव एक साथ कराने की वकालत करते रहे हैं। मगर अब सरकार ने इस मामले में कदम आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।

शुक्रवार को खुद पीएम मोदी ने एक राष्ट्र एक चुनाव की संभावनाओं के वास्तुस्थिति का जायजा लिया। सूत्र बताते हैं कि शुक्रवार को संपन्न हुई भाजपा संसदीय दल की कार्यकारी बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि हम एक राष्ट्र एक चुनाव की वकालत करते हैं। मगर इसकी वास्तुस्थिति क्या है, इस मामले में हम कहां पहुंचे हैं।

पीएम के इस सवाल के बाद बैठक में उपस्थित भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने एक राष्ट्र एक चुनाव की स्थिति पर विस्तार से जानकारी दी। यादव ने पीएम मोदी और बैठक में उपस्थित अन्य नेताओं को बताया कि चुनाव सुधार के तहत मामला संसदीय समिति के पास है। इसके अलावा एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर दो रिपोर्टस भी हैं।

जिनमें देश के सभी चुनाव एक साथ कराने की वकालत की गई है। यादव की दलील सुनने के बाद सरकार ने संसदीय समिति के रिपोर्ट आने तक इंतजार की बात कही। बताया जा रहा है कि सरकार के रूख को ध्यान में रखते हुए संसदीय समिति एक राष्ट्र एक चुनाव के मामले में अपनी गति तेज करेगी।

उल्लेखनीय है कि 14 दिसंबर को शीत सत्र की औपचारिकता के लिए हुई सर्वदलीय बैठक में भी पीएम मोदी ने सभी सियासी दलों से एक राष्ट्र एक चुनाव की नीति पर मन बनाने का आह्वान किया। इसके बाद उन्होंने मामले में सरकार की तैयारियों का भी जायजा लिया है। इससे पहले वे राष्ट्रीय न्याय दिवस के दिन भी एक राष्ट्र एक चुनाव की वकालत कर चुके हैं।

क्यों हो रही है एक राष्ट्र एक चुनाव की वकालत

चुनावों में होने वाले बेतहाशा खर्च को रोकने और विकास योजनाओं के प्रभावित होने से बचाने की दलील देते हुए पीएम मोदी एक राष्ट्र एक चुनाव की वकालत कर रहे हैं। चुनाव आयोग का आंकलन है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हर पांच वर्ष पर एक साथ कराए जाने पर करीब 8000 करोड़ रूपए का खर्च होगा।

जबकि वास्तविक खर्च कहीं इससे ही ज्यादा जाता है। सीएमएस के आंकलन के अनुसार 14वीं लोकसभा के चुनाव में करीब 30,000 करोड़ रूपए खर्च हुए हैं। इसमें सरकार का शेयर करीब 7000 से 8000 करोड़ रूपया रहा है। उसने राज्य विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों पर होने वाले खर्च को 60,000 करोड़ बताया है।

इसमें सरकारी का खर्च करीब 16,000 करोड़ के आसपास है। सीएमएस के अनुमान के अनुसार जिस कदर महंगाई बढ़ रही है। उसे ध्यान में रखते हुए आने वाले समय में चुनावों पर ही देश का करीब 80,000 करोड़ रूपया खर्च होगा। इसमें सरकार का खर्च करीब 20,000 करोड़ के करीब बैठेगा। सीएमएस रिपोर्ट के अनुसार यदि सभी चुनाव एक साथ संपन्न कराए जाएं तो खर्च घटकर आधा रह जाएगा। 

आसान नहीं है एक राष्ट्र एक चुनाव की राह 
वैसे पीएम मोदी बेशक एक राष्ट्र एक चुनाव की वकालत में जमकर जुटे हुए हैं। मगर इसकी राह आसान नहीं दिख रही है। एक तो मामले में सरकार की रफ्तार सुस्त है। तो दूसरी सबसे बड़ी बात है कि सरकार को इसके लिए सभी सियासी दलों को राजी करना पड़ेगा। और कारगर कानून भी बनाने पड़ेंगें।

हालांकि चंद माह पहले चुनाव सुधार की वकालत करते हुए नीति आयोग ने सरकार को जो सुझाव दिए हैं। उसमें देश के चुनाव दो भाग में कराने की बात कही गई है। यानि नीति आयोग का जोर ढ़ाई वर्ष पर चुनाव कराने का है। ताकि राजनीतिक संतुलन भी बना रहे।

अगर आयोग की बात मानी गई तो लोकसभा चुनाव 2019 के साथ देश के आधे राज्यों के चुनाव होंगे। और शेष राज्यों के चुनाव 2021 में संपन्न हो सकेंगे। इसके अलावा विधि आयोग ने भी अलग से सिफारिशें की है। अब सरकार ने संसदीय समिति के रिपोर्ट की इंतजार करने के साथ भूपेंद्र यादव को इस कार्य में जुटा रखा है कि वे सभी रिपोर्टों का अध्ययन कर मामले में उचित ड्राफ्ट तैयार करें।