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बजट ने बढ़ाई कायाकल्प की उम्मीद

03_02_2017-2rajiv_kumarवित्त वर्ष 2017-18 के बजट से पहले तमाम आशंकाएं घर कर रही थीं। पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से चंद दिन पहले पेश होने वाले बजट को लेकर व्यापक आशंकाएं थी और सरकार पर ऐसे आरोप भी लगाए जा रहे थे कि इसमें तमाम लोकलुभावन कदम उठाए जाएंगे और इसका स्वरूप बहुत पक्षपाती होगा। संभवत: इसी वजह से विपक्षी दल बजट की तारीख आगे बढ़वाना चाहते थे। हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा वसंत पंचमी के अवसर पर पेश किया गया बजट काफी सुखद आश्चर्य वाला रहा। उनकी ओर से पेश बजट न केवल लोकलुभावनवाद के मोहपाश से मुक्त रहा, बल्कि वास्तव में बेहद दूरगामी सकारात्मक प्रभावों वाला भी रहा। बजट ने साबित किया कि उसे लेकर विपक्षी दलों की आपत्ति व्यर्थ थी। बजट में ऐसा कुछ नहीं कि यह कहा जा सके कि सरकार का इरादा तो लोक लुभावन घोषणाओं के जरिये चुनाव जीतना है। भविष्य में इसे ऐसे बजट के तौर पर देखा जा सकता है, जिसने भारत के आर्थिक वृद्धि चक्र को खासा परिवर्तित कर दिया। बजट के ऐतिहासिक पहलुओं पर गौर करें तो ऐसी तीन बातों का उल्लेख किया जा सकता है, जो पहली बार बजट में देखने को मिलीं। सबसे पहली तो यही कि वित्त मंत्री ने इसे 1 फरवरी की पेश कर उस अक्षम प्रक्रिया को तिलांजलि देना सुनिश्चित किया, जिसमें वोट ऑन अकाउंट यानी लेखानुदान की जरूरत पड़ती थी। अब चालू वित्त वर्ष के अंत तक वित्त विधेयक को स्वीकृति मिल जाएगी। दूसरी प्रमुख बात यह यही कि इसमें योजनागत और गैर-योजनागत व्यय के बीच के अंतर को खत्म कर दिया गया, जो बेवजह की बनावटी परिपाटी बनी हुई थी। इसे खत्म करने से अब पूंजीगत और राजस्व व्यय हिस्सेदारी की बेहतर तस्वीर सामने आएगी। यहां पर यह गौर करना उल्लेखनीय होगा कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.2 प्रतिशत तक लाने और इसके साथ ही राजस्व घाटे को 1.8 प्रतिशत (जबकि एफआरबीएम समिति ने इसके लिए 2 प्रतिशत की सीमा सुझाई थी) तक घटाने में वित्त मंत्री ने निवेश और रोजगार सृजन को प्रोत्साहन देने की दिशा में जबरदस्त दूरदर्शिता और जिम्मेदारी का भाव दर्शाया। तीसरी बात का ताल्लुक रेल बजट को आम बजट में समाहित करने से जुड़ा है। इस प्रकार अलग से रेल बजट पेश करने की औपनिवेशिक परंपरा को खत्म कर दिया गया।

रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाने से समूचे परिवहन क्षेत्र के लिए व्यापक नीति बनाने गुंजाइश मिली है। यह बहुस्तरीय परिवहन तंत्र के तेज विकास को गति देगी। समूचे परिवहन तंत्र के लिए आवंटन बढ़ाकर 2.41 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो इस क्षेत्र के लिए अभी तक का सबसे बड़ा आवंटन है। इस बजट के मुख्य रूप से तीन बुनियादी लक्ष्य भी हैं। यह बजट बेहद अहम घरेलू निवेश को फिर से पटरी पर लाना चाहता है, जिसकी रफ्तार मंद पड़ गई है। इसके लिए बजट में सरकारी पूंजीगत निवेश में 24.5 प्रतिशत का भारी इजाफा किया है। यह बढ़ोतरी इस उम्मीद के साथ की गई है कि इससे निजी निवेश में तेजी आएगी। इसी कड़ी में सालाना 50 करोड़ रुपये से कम कारोबार वाले छोटे एवं मझोले उपक्रमों यानी एसएमई के लिए कारोबारी निगम कर की दर 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दी गई है। इनके अतिरिक्त कारोबार की राह सुगम बनाने पर भी खासा जोर है। इन कदमों से भारत में तकरीबन 96 प्रतिशत कंपनियां सकारात्मक रूप से प्रभावित होंगी और उन्हें नई गति मिलने के साथ ही रोजगार सृजन की व्यापक संभावनाएं बनेंगी। ये 96 प्रतिशत कंपनियां रोजगार के नए अवसरों को पैदा करने का काम करती हैं। इनका दायरा हर तरह की आर्थिक गतिविधियों तक है। इनमें सूचना प्रौद्योगिकी, रक्षा, चमड़ा, सामान्य इंजीनियरिंग तो हैं ही, सेवा क्षेत्र भी है। कर में रियायत से उत्साहित ये कंपनियां अच्छी संख्या में रोजगार पैदा करने का काम कर सकती हैं।बजट की दूसरी बुनियादी प्राथमिकता सीधे तौर पर रोजगार सृजन से जुड़ी है। देश में अधीर होते बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार की जरूरत को तत्काल पूरा करना समय की मांग थी। किफायती मकानों की योजना को इतने बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन देने के पीछे यही मकसद है। अर्थव्यवस्था में इसके व्यापक अंतर्निहित जुड़ाव हैं और यह योजना रोजगार सृजन का लक्ष्य हासिल करने में खासा योगदान देगी। कपड़ा और अन्य श्रम बहुल क्षेत्रों के लिए विशेष प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए बढ़ा आवंटन भी इस दिशा में मददगार होगा। एसएमई के लिए कर रियायत भी स्वाभाविक रूप से सहायक सिद्ध होगी।

बजट का तीसरा लक्ष्य काले धन के प्रवाह और अवैध आमदनी वाली अर्थव्यवस्था की सफाई से जुड़ा है, जो समांतर अर्थव्यवस्था की गुंजाइश और दायरे को बहुत तेजी से सिकोड़ता है। नोटबंदी के बाद बजट में भी राजनीतिक दलों को मिलने वाले व्यक्तिगत चंदे की सीमा 2,000 रुपये करने से राजनीतिक भ्रष्टाचार के उद्गम पर सीधी और करारी चोट की गई है। यह चुनाव आयोग की सिफारिशों के अनुरूप ही उठाया गया कदम है। बीते 8 नवंबर से 30 दिसंबर के दौरान जमा राशि के आंकड़ों का ब्योरा देकर वित्त मंत्री ने शायद अवैध रूप से कमाई करने वालों में खलबली मचा दी होती। नतीजतन 31 मार्च तक उन्हें प्रधानमंत्री लोक कल्याण योजना के लिए अधिक संसाधन हासिल हो सकते हैं। जैसा कि अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने कहा कि यह नया सामान्य दस्तूर बन जाएगा और वैश्विक निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर अर्थव्यवस्था को तेज, सतत और समावेशी वृद्धि के चक्र की ओर अग्रसारित करेगा। नोटबंदी ने उपभोग के मोर्चे पर जो हालात खराब किए हैं, बजट उस नुकसान की भरपाई करेगा। आयकरदाताओं की सबसे निचली श्रेणी में 5 लाख रुपये तक की आमदनी पर आयकर की दर को 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करके बजट ने अपने स्तर पर इसका इलाज ढूंढ़ा है। इससे न केवल कम आमदनी वाले, बल्कि ऊंची आमदनी वाले वर्गों के पास भी डिस्पोजिबल इनकम यानी खर्च करने के लिए अतिरिक्त राशि बढ़ेगी। हालांकि मुझे तब और ज्यादा खुशी मिलती, अगर वित्त मंत्री 30 प्रतिशत की सबसे ऊंची कर वाली श्रेणी के लिए आमदनी का दायरा मौजूदा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 24 लाख रुपये कर देते। इससे कर अनुपालन निश्चित रूप से सुगम होने के साथ ही कर दायरा बढ़ाने में भी मदद मिलती और यह दांव कंज्यूमर ड्यूरेबल्स यानी टिकाऊ उपभोक्ता सामानों की मांग बढ़ाने के लिए कुछ और रकम बचने की गुंजाइश छोड़ता।

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