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बच्चों का खेल नहीं ये कट्टी-बट्टी…

यह आम parents_02_02_2016बात होती है पति, पत्नी के विचार एक-दूसरे से अलग हों लेकिन समस्या को सुलझाने की बुनियादी पहल यानी संवाद को छोड़कर एक-दूसरे की गलतियों को गिनाने में समस्या कहीं पीछे छूट जाती है, बस रह जाता है तो केवल कलह का माहौल।

तीखे शब्दों और दोषारोपण के इस चक्र में बच्चे कब फंसते चले जाते हैं, इसका पता मां-बाप को भी नहीं चल पाता है। और जब चलता है तब तक बच्चे का कोमल मन इतना आहत हो चुका होता है कि उसका असर उनके बड़े होने तक भी दूर नहीं हो पाता। यूके की कार्डिफ यूनिवर्सिटी की एक नई रिसर्च बताती है कि बच्चों के सामने मां-बाप का अक्सर झगड़ना उनके मस्तिष्क पर गंभीर असर डालता है।

माता-पिता के झगड़ों से बच्चों पर गहरा भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। उनके झगड़े जितने गंभीर होते हैं साइकोलॉजिकल प्रभाव उतने ही गहरे होते हैं। इसकी वजह से बच्चों में भावनात्मक और व्यवहार से जुड़ी समस्याएं प्रबल होने लगती हैं। उनमें एंग्जाइटी, डिप्रेशन, स्लीप डिसऑर्डर, आत्मविश्वास में कमी, स्कूल में बेहतर रिजल्ट न दे पाना और कई सारी परेशानियां एक साथ नजर आने लगती हैं।

लगातार माता-पिता के विवाद, तनाव और परिवार के अंधकारमय भविष्य के बीच में बड़ा होता बच्चा अपनी स्थिति को लेकर असमंजस में रहता है। वे खुद को इस स्थिति में असहाय-सा महसूस करते हैं। भले ही माता-पिता के बीच मारपीट जैसी चीज नहीं हो रही हो लेकिन रोज-रोज के झगड़ों में बच्चा खुद को असुरक्षित महसूस करने लगता है, चूंकि बच्चों की कल्पनाशीलता बहुत अच्छी और तीव्र होती है इसलिए वे खुद पर या अपने परिवार पर आने वाले खतरों को लेकर कल्पनाएं करते रहते हैं। उन्हें अपने माता-पिता के अलग हो जाने या तलाक का भी डर सताता रहता है।

बच्चों को कई बार ऐसा महसूस होता है कि उनके माता-पिता के बीच हो रहे झगड़े का कारण वही है। जब दंपति के बीच पैरेंटिंग के तरीकों, स्कूल से जुड़े मुद्दों या बच्चों पर होने वाले खर्च को लेकर बहस होती है, तो बच्चा इन सबके लिए खुद को दोषी मानने लगता है। इससे बच्चों पर भावनात्मक दबाव पड़ता है कि उनके माता-पिता उनकी वजह से कलह कर रहे हैं।

दूसरों के साथ किस तरह का व्यवहार होना चाहिए इसकी सीख बच्चों को अपने माता-पिता से ही मिलती है। यदि माता-पिता के बातचीत का तरीका गलत होगा और समस्याएं सुलझाने का भी तो फिर बच्चा किसे अपना रोल मॉडल माने और किसका अनुसरण करे। यह बड़ा सवाल बच्चों के सामने खड़ा हो जाता है, जिस पर कि बच्चे का पूरा व्यक्तित्व टिका हुआ है। बड़े होने पर वह सही निर्णय लेने में या किसी नतीजे पर पहुंचने में खुद को असमर्थ पाता है।

यदि बच्चा लगातार मां से पिता की और पिता से मां की बुराई सुनता रहता है तो माता-पिता के साथ बच्चे का रिश्ता कमजोर पड़ जाता है। ऐसे में बच्चा यह तय नहीं कर पाता है कि दोनों में से सही कौन है और कौन गलत है? क्योंकि दोनों ही उसके लिए उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं।

माता-पिता अपने विवाद बच्चों के सामने न लाएं। चिल्लाना, एक-दूसरे पर दोष मढ़ना, गुस्सैल चेहरा और कुछ कर देने की धमकी जैसी चीजों को लेकर बच्चों के सामने सतर्क रहें और उन्हें इनसे दूर रखें। खासकर एक-दूसरे को चोट पहुंचाने के प्रयास करने जैसी गतिविधि देखना बच्चों के दिमाग को बुरी तरह से प्रभावित करता है।

दो अलग लोगों के बीच दो अलग तरह के विचारों को बातचीत के सही तरीकों से भी सुलाझाया जा सकता है, उसके लिए तीखे शब्दों या व्यवहार की जरूरत नहीं होती। अब हमारे सामने संवाद के कई नए तरीके हैं, जिनके जरिए हम स्वस्थ तरीके से अपनी बात एक-दूसरे के सामने रख सकते हैं और समझा सकते हैं। अपने विचार रखना, सामने वाले की बात सुनना, समस्या को सुलझाने के तरीके ढूंढना कई ऐसे माध्यम हैं, जिनसे विवाद पर विराम लगाया जा सकता है और नजर न आने वाली उस क्षति को रोका जा सकता है।

संवाद के इन तरीकों से हम परिवार के बीच भावनात्मक एका ला सकते हैं। इससे सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति लगाव बढ़ेगा और सम्मान भी। विचारों में अंतर तब तक ही उचित है जब तक कि वह परिवार के हित में हो लेकिन इससे आगे वह नुकसानदायक हो सकता है।

विवाद के बीच माता या पिता दोनों ही इस ताक में रहते हैं कि वे बच्चे को अपने सपोर्ट में खड़ा कर लें। लेकिन इस लालच में न पड़ें और बच्चों को अपने विवाद का मोहरा न बनाएं। यह बच्चे के मन के लिए क्षति पहुंचाने वाला कदम हो सकता है। यदि इस स्थिति में बच्चों से सपोर्ट नहीं लेंगे तो उन तक यह संदेश जाएगा कि स्थिति माता-पिता के नियंत्रण में है और उन्हें पता है कि वे क्या कर रहे हैं। इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आखिरकार वो बच्चे हैं और यह वयस्कों का मसला है। आप चाहें तो अपने परिवार, बड़े-बुजुर्ग या किसी प्रोफेशनल की मदद भी ले सकते हैं।

माता-पिता के बीच किन मुद्दों को लेकर विवाद है इसके बारे में थोड़ी जानकारी बच्चों को देना उचित है। अपने बच्चों के प्रति इस मामले में ईमानदारी बरती जा सकती है कि उन्हें मामले की संक्षिप्त जानकारी हो, खासकर जबकि बच्चा बड़ा हो रहा हो। माता-पिता बच्चों को यह बताएं कि यह झगड़े उनकी वजह से नहीं हो रहे हैं और वे जल्द ही इसका कोई न कोई हल जरूर ढूंढ लेंगे।

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