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फेक न्यूज का बुरा असर: Google, Facebook और Twitter को ऐड देने से डर रही कंपनियां

नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और उनके वायरल होने के बढ़ते ट्रेंड व उन्हें लेकर लगातार आ रही शिकायतों की अब फेसबुक, ट्विटर और गूगल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है.

इन दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की कमाई के मेजर स्त्रोत यानि अन्य कंपनियों से मिलने वाले विज्ञापनों में भारी गिरावट आई है. बताया जा रहा है कि कोई भी ब्रांड ये नहीं चाहता कि किसी भी तरह की फेक या कॉन्ट्रोवर्शियल न्यूज के साथ उनका विज्ञापन नजर आए. उनका मानना है कि इससे उनकी छवि पर भी बुरा असर पड़ता है. जानकारी के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने डिजिटल मीडिया के स्ट्रॉन्ग नेटवर्क का इस्तेमाल कर रेवेन्यू में बढ़ोतरी की उम्मीद की थी, लेकिन फेक न्यूज के कारण उनकी उम्मीदों को झटका लगा है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डिजिटल मीडिया पर करीब 4 लाख करोड़ रुपए के एड-स्पेस बिजनेस का संचालन करने वाली कंपनी ग्रुप-एम के हवाले से ये जानकारी सामने आई है. ग्रुप-एम की ओर से बताया गया कि गूगल, एफबी और यू-ट्यूब को इस साल की शुरुआत में आस थी कि साल के अंत तक उन्हें 15 फीसदी से ज्यादा ता रेवेन्यू मिलेगा, लेकिन नौ महीने बीत जाने पर भी ये आंकड़ा 11 फीसदी ही है. आखिर के महीनों में भी विज्ञापनों के मामले में कोई बड़ा फायदा होने की उम्मीद कम ही है.

ग्रुप-एम के निदेशक एडम स्मिथ ने बताया, इस साल मार्च के बाद से कंपनियों का सोशल मीडिया पर विज्ञापन देने के प्रति नजरिया बदल गया. कंपनियां कंटेंट को लेकर यूजर्स की विश्वसनीयता घटने के कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस को विज्ञापन देने से कतरा रही हैं. वहीं जो कंपनियां विज्ञापन दे भी रही हैं, वो एकमुश्त पेमेंट नहीं कर रही हैं. उन्होंने कहा कि ये बदलाव अचानक से नहीं हुआ है, बल्कि ये काफी समय से आ रही यूजर की शिकायतों का असर है.

फेसबुक पर हुआ सबसे बुरा असर

कंटेंट की गिरती विश्वसनीयता का सबसे बुरा असर फेसबुक के ऐड रेवेन्यू पर हुआ है. दुनिया की सबसे बड़ी विज्ञापन कंपनी हावास ने जहां फेसबुक को दिए जाने वाले विज्ञापनों में कमी की है, वहीं यूके की बड़ी कंपनियां ओ-2, ईडीएफ और रॉयल मेल ने फेसबुक को दिए जाने वाले करीब 1500 करोड़ के ऐड देने ही बंद कर दिए हैं.

लंदन की एक मीडिया एजेंसी के अनुसार, फेक न्यूज के लिए 70 फीसदी यूजर फेसबुक और ट्विटर को ही जिम्मेदार मानते हैं. फेक न्यूज को लेकर उठाए गए फेसबुक के जरिए उठाए गए कदमों को लेकर भी लोगों में असंतोष का भाव है. महज 7% लोग मानते हैं कि एफबी फेक न्यूज को रोकने के लिए जरूरी कदम उठा रहा है. वहीं बाकी के लोग अब भी यही मानते हैं कि फेक न्यूज को पहचानना अभी भी मुश्किल है, जिससे यूजर्स में काफी नाराजगी है.