Lakhimpur/Dev Srivastav: बच्चे अपने मां-बाप को जान से भी ज्यादा प्यारे होते हैं। उनके पालन-पोषण व उनके सुखमय भविष्य के लिए वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। अब सोचिये कि किसी गरीब का बच्चा बुरी तरह जल जाए। डाक्टर सर्जरी की बात कहें। पिता रिक्शा चलाता हो। मां घर पर बच्चों को पालती हो तो ऐसे में उनकी क्या दशा होगी। यह दर्द खीरी कस्बे रहने वाली एक मां डेढ़ साल से झेल रही है। बच्ची के इलाज के लिए जब इंतजाम न हो सका, गुहारें-फरियादें नेताओं-अधिकारियों की ड्योढ़ी पर दम तोड़ गईं तो मां ने हार कर हाथ फैलाने शुरू कर दिए। मां दस-पांच रुपए जोड़-जोड़ कर पैसे का इंतजाम करने में लगी है।
फूस से जली नगमा,डॉ ने बताया लाखों का खर्च
मोहल्ला श्यामलालपुरवा निवासी नजीर रिक्शा चालक हैं। नजीर की पांच बेटियां व एक बेटा है। करीब डेढ़ साल पहले सबसे चौथे नंबर की बेटी नगमा बच्चों के साथ खेल रही थी। खेलते-खेलते वह फूस की बनी टटिया में पहुंची और खेल-खेल में ही उसने टटिया को आग लगा दी। अंजाम से अंजान नगमा जब आग से घिर गई तो वह मदद के लिए चीखने लगी। इसी बीच जलती फूस नीचे गिरने लगी और वह आग की चपेट में आकर जलने लगी। जब तक लोगों ने उसे बचाया वह बुरी तरह जल चुकी थी। आनन-फानन में जिला अस्पताल लाया गया जहां डाक्टरों ने उसकी जान तो बचा ली लेकिन बच्ची अभी भी बहुत पीड़ा से जूझ रही है। डाक्टरों ने मां-बाप को बताया कि उसका इलाज लखीमपुर में संभव नहीं। जब परिवार लखनऊ पहुंचने पर डाक्टरों ने केवल सर्जरी का ही खर्चा पचास हजार रुपए बताया। लाखों के इलाज के बाद ही उनकी बेटी सही हो पाएगी।
नेताओं ने मदद के नाम पर दिया आश्वासन,आखिर में माँ ने इलाज के लिए फैलाया हाथ
बच्ची के इलाज के लिए भीख मांग रही उसकी मां ने बताया कि पति रिक्शा चलाते हैं। इलाज के लिए मदद मांगने पहले वह एक सपा नेता के पास पहुंची कई बार जाने पर वह आश्वासन ही देते रहे फिर भाजपा नेता के पास गई वहां भी आश्वासन ही मिला। समाजसेवियों, नेताओं की दहलीज पर माथा रगडऩे के बाद भी जब मदद न मिली तो मां ने खुद इलाज के लिए पैसे जुटाने का बीड़ा उठाया। वह रास्ते पर, आफिसों में, दुकानों व घरों में जाकर लोगों से भीख मांग रही है। पाई-पाई जोड़कर लाखों का इंतजाम करना चंद दिनों का काम नहीं। यह बात वह जानती है फिर भी अब उसके पास कोई चारा नहीं।
डर के मारे नहीं भेजते हैं स्कूल
प्राथमिक विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा मिलती है। लेकिन झुलसने के चलते मां-बाप नगमा को स्कूल नहीं भेजते। मां ने बताया कि उसे देख बच्चे डर सकते हैं या बच्चे उसका मजाक उड़ाएं। हो सकता है कि उसकी हालत के चलते शिक्षक उसका प्रवेश ही न करें। इन सब डर की वजह से वह उसे पढऩे भी नहीं भेजते।