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… तो रिश्तों के लिए बढ़िया है स्मार्टफोन

स्मार्ट फोन के बढ़ते अडिक्शन को लेकर जहां लोगों में खौफ बढ़ रहा है वहीं एक स्टडी में सामने आया है कि लोग सोशल इंटरैक्शन के अडिक्ट हो रहे हैं न कि अपने स्मार्टफोन के। यानी टेक्नॉलजी आपको लोगों से दूर नहीं ले जा रही बल्कि आप ज्यादा लोगों से जुड़ रहे हैं। 

फ्रंटियर्स इन साइकॉलजी में छपे स्टडी के नतीजों के मुताबिक, स्मार्टफोन के अडिक्शन से लोग हाइपर-सोशल हो जाते हैं न कि ऐंटी-सोशल। कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी से सैम्युअल बताते हैं, ‘इस टॉपिक को लेकर लोगों में काफी डर है। हम कुछ अच्छी खबर देना चाहते हैं और यह दिखाना चाहते हैं कि हमारी लोगों से बातचीत करने की इच्छा अडिक्टिव है और इससे निपटने के काफी आसान तरीके हैं।’ 
हम कई लोगों को जानते हैं जो अपने फोन के बिना कुछ मिनट भी नहीं बिता पाते। ऐसे लोग लगातार टेक्स्ट करते रहते हैं या चेक करते हैं कि उनके दोस्तों ने सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट किया। इसे कई लोग ऐंटी-सोशल व्यवहार कह सकते हैं, जो मोबाइल अडिक्शन की वजह से आ रहा है। यह प्रक्रिया बीते कई महीनों से मीडिया के ध्यान में आ रही है और इस समस्या से निपटने के उपाय भी ढूंढ़े जा रहे हैं। 

सैम्युअल कहते हैं कि दूसरों को देखने और मॉनिटर करने की इच्छा साथ ही खुद को दिखाने और दूसरों से मॉनिटर होने की इच्छा, यह विकास के क्रम का हिस्सा है। मनुष्य का विकास एक यूनीक स्पीशीज के रूप में हुआ है और उन्हें अपने व्यवहार के मार्गदर्शन के लिए लगातार दूसरों से इनपुट की जरूरत रहती है। 

रिसर्च में स्मार्ट टेक्नॉलजी के इस्तेमाल को बारीकी से देखा गया तो सामने आया कि स्मार्टफोन के ज्यादातर फंक्शंस में एक चीज कॉमन थी वह थी, दूसरे लोगों से जुड़ने की चाह। 

जहां स्मार्टफोन का उपयोग समाज से जुड़ने की नॉर्मल और हेल्थी जरूरत है वहीं सैम्युएल यह भी मानते हैं कि इसकी अधिकता से दूसरे अनहेल्थी अडिक्शंस हो सकते हैं। 

पुश नोटिफिकेशंस या निर्धारित समय पर फोन से दूरी बनाकर स्मार्टफोन अडिक्शन से बचा जा सकता है। रिसर्च में यह भी सलाह दी गई कि शाम को और वीकेंड पर ई-मेल न चेक किए जाएं, यह जरूरी है। 

वह बताते हैं, ‘टेक कंपनीज या इन डिवाइसेस के इस्तेमाल पर लगाम लगाने के बजाय हमें स्मार्टफोन के सही इस्तेमाल पर चर्चा करनी चाहिए।’