तीन तलाक विधेयक गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गया। बिल पर एक तरफ जहां आम मुस्लिम महिलाएं और उनके उत्थान के लिए काम करने वाले संगठन खुश दिखे, वहीं धार्मिक संगठनों से जुड़े लोगों ने इस पर नाराजगी जताई। तलाकशुदा महिलाओं ने भी बिल पर खुशी जाहिर की है।
महिला जागरण केंद्र की सजिना राहत ने कहा कि लोकसभा में तीन तलाक बिल पास होने पर मुस्लिम महिलाओं की लड़ाई को न्याय मिला है। इससे आम मुस्लिम महिलाएं खुश हैं। ईजाद संस्था की अख्तरी बेगम ने कहा कि देश में मुस्लिम महिलाओं ने अलग-अलग संगठनों के जरिये आंदोलित होकर तीन तलाक के खिलाफ जो आवाज बुलंद की, यह उस आंदोलन की सफलता है। यह मुस्लिम महिलाओं के हक में न्याय, मानवता और समानता की जीत है। कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियों ने भी इस बिल के पास होने पर खुशी जताई है।
तलाकशुदा महिलाओं ने कहा अच्छी पहल : तलाकशुदा महिलाओं ने बिल को अच्छी पहल बताया है। कहा कि इस नये कानून से बात-बात पर तलाक कहने वालों में कमी आएगी। हालांकि तलाकशुदा महिलाएं आत्मनिर्भर हों, इसके लिए सरकार मुआवजा के साथ रोजगार मुहैया कराती है तो यह एक अच्छी पहल होगी।
नया टोला फुलवारीशरीफ के नेमत परवीन ने कहा कि तीन तलाक को रोकने के साथ ही तलाकशुदा महिलाओं को अत्मनिर्भर होने के लिए रोजगार होना जरूरी है। नेमत परवीन को शादी के दो साल बाद ही पति ने तलाक दे दिया था। वह फिलहाल प्राइवेट जॉब कर अपना गुजर-बसर कर रही है। इशापुर के सलमा खातून ने कहा कि एक बार में तीन तलाक कहना इस्लाम की नजर में भी गुनाह है। मेरी बेटी की शादी में छोटी सी बात पर पति ने मुझे तलाक दे दिया। सरकार के इस कानून से बहुत खुश हूं।
बिल से तलाकशुदा महिलाओं को कोई फायदा नहीं
फुलवारीशरीफ खलीलपुरा के गुलशन आरा ने भी इसका स्वागत किया। कहा कि नये कानून से महिलाओं को राहत मिलेगी। तलाक की संख्या में कमी होगी। तलाक वालों के साथ सुलह कराने के लिए सरकार को आयोग का गठन करना चाहिए। चूंकि अब तक जितने भी महिला आयोग हैं, ऐसे मामले में कोई खास पहल नहीं करती है। सिर्फ नोटिस तक ही सीमित हो जाता है। गुलशन को उसके पति ने शादी के चार साल बाद तीन बच्ची पैदा होने पर घर से निकाल दिया था। तलाक दे दिया था। अब वह मायके में रह रही है।
बिल से तलाकशुदा महिलाओं को कोई फायदा नहीं
बिहार, झारखंड, ओडिशा व पश्चिम बंगाल के मुस्लिम के सबसे बड़े एदारा इमारत ए शरिया के नाजिम अनिसुर्रहमान कासमी ने तीन तलाक पर पारित हुए बिल का जमकर विरोध किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि इस बिल से तलाकशुदा महिलाओं को कोई फायदा नहीं है। तीन तलाक पर जो बिल पास हुआ है वह इस्लाम के खिलाफ है। मोदी सरकार सिर्फ मुसलमानों को गुमराह करने की साजिश रच रही है। यह सियासी तरीके से मुस्लमानों को नुकसान पहुंचाने की साजिश है। आम तौर पर तलाक देने वाले लोग कमजोर तबके के होते हैं। सरकार उनके लिए क्या कर रही है जो अपनी पत्नी को छोड़ दे रहे हैं। दूसरे मामलों में महिलाओं पर जो जुल्म हो रहे हैं, उनमें क्या सजा हो रही है।
देश के संविधान से छेड़छाड़
तीन तलाक बिल हमारे देश के संविधान से छेड़छाड़ है। संविधान में हमें जो धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, यह उसमें छेड़छाड़ है। जिस समुदाय की महिलाओं के लिए तीन तलाक पर कानून बना रहे हैं, उसी समुदाय में से 5 करोड़ महिलाओं ने इसके विरोध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जरिये अपना हस्ताक्षर भेजा है। आखिर यह बदलाव किसलिए और किसके लिए है।
विधेयक समझ के बाहर
तीन तलाक बिल कानून या बौद्धिक रूप से समझ से बाहर है। अब जरा सोचिए कि जिस मर्द को तीन साल की सजा हो जाएगी। वह अपने बीवी-बच्चों का पालन कैसे करेगा। विधेयक के मुताबिक जब कोई तीन तलाक देगा तो वह मान्य ही नहीं होगा तो फिर आप किस जुर्म की सजा देंगे। इस्लामी शरियत के किसी भी एंगल से यह कानून मेल नहीं खाता है।
समस्याएं और बढ़ेंगी
जब देश की सर्वोच न्यायालय ने तीन तलाक पर अपना फैसला सुना दिया तो अब पार्लियामेंट में बिल पारित किये जाने का औचित्य समझ में नहीं आता। आपराधिक कानून अनिवार्य मामलों में ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जब आरोपित को दंडित करने का विकल्प नहीं बचता। इस कानून से मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं में बढ़ोतरी होगी।
विश्वास में लेना जरूरी
वर्तमान केंद्र सरकार ने तीन तलाक़ के धार्मिक मामले में जान बूझकर हस्तक्षेप किया है, जबकि भारतीय संविधान में हर मज़हब के मानने वालों को अपने धर्म के अनुसार उनपर चलने की आज़ादी है। तीन तलाक़ जो कि एक सिविल मामला है, इसको क्रिमिनल मामला से जोड़ दिया गया है जो ग़लत है। सरकार को चाहिए कि मज़हबी मामलों में दखल देने से पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीअत उलेमा ए हिन्द जैसे संगठनों को विश्वास में ले।