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ट्रम्‍प की जीत से चीन-पाक चिंतित, भारत की जगी उम्मीद

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनॉल्ड ट्रम्‍प की जीत से चीन और पाकिस्तान की चिंता बढ़ गई है। ट्रम्‍प के आतंक विरोधी अभियान से पाकिस्तान और चीन निराश है। विश्व में बढ़ती आर्थिक शक्तियों के कारण अमेरिकी नागरिक बदलाव के मूड़ में थे। इन शक्तियों में चीन का नाम भी आता है।

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अपने एक भाषण में डोनाल्ड ट्रम्‍प ने यह चिंता जताई थी कि इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले हम (अमेरिका) चीन और दुबई जैसे देशों से पिछड़ गए हैं। मानो अमेरिका तीसरी दुनिया का देश बन गया हो। उन्होंने वादा और दावा किया कि अगर वह अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो वह चीजों को दुरुस्त करेंगे। और अब वो राष्‍ट्रपति बन गए हैं।

अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1999-2011 तक अमेरिका में चीन से आयात इतना बढ़ गया कि 24 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ीं। ट्रम्‍प चाहते हैं कि अमेरिका आगे आए और चीन को बैकफुट पर पहुंचाया जाए। वे ग्लोबल बिजनेस में अमेरिकी को मजबूती देना चाहते हें। उनका मानना है कि वह जब आएंगे तो चीनी आयात पर 45 प्रतिशत शुल्क लगाया जाएगा।

भारत और चीन की चर्चा

डोनाल्ड ट्रम्‍प ने कुछ समय पहले भारत की प्रशंसा की थी। समझा जा रहा है कि यह पहली बार हुआ है। वह कह चुके हैं कि भारत का प्रदर्शन अच्छा चल रहा है। मोदी सरकार बनने के बाद निवेशक भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। भारत में आशावाद लाने का श्रेय उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया है।

अमेरिकी न्‍यूज चैनल सीएनएन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया था अब लोग चीन और भारत के बारे में बात करने लगे हैं। हालांकि वे अपने भाषणों में चीन की आलोचना कर चुके हैं, लेकिन भारत के प्रति उनका नजरिया अच्छा दिख रहा है।

भारतीय मूल के लोग खुश

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनॉल्ड ट्रम्‍प के जीत से भारतीय मूल के अमेरिकी ज्यादा खुश है। भारतीयों ने वहां राजनीति में ज़्यादा दिलचस्पी लिए थे। वे शिक्षा और संपन्नता की दृष्टि से औसत अमेरिकी से बहुत आगे हैं। इनमें से अधिकतर डॉक्टरी, इंजीनियरिंग और वैज्ञानिक शोध जैसे व्यवसाय करते हैं।

हाल में भारत के आर्थिक विकास, विश्व में बेहतर हो रही उसकी छवि और अमेरिका के साथ उसके संबंधों में मज़बूती आने से भारतीय मूल के समुदाय के राजनीतिक दमखम बढ़ा है। आंकड़ों के हिसाब से अमेरिका में बसने वाले भारतीयों की आबादी 25 लाख से अधिक है।

भारतीय अमेरिकी लोगों की राजनीतिक सक्रियता केवल जागरूक मतदाता होने तक ही सीमित नहीं रही। वे देश की राष्ट्रीय और स्थानीय राजनीति में भी वे बख़ूबी उभरकर सामने आए हैं।

विश्व के लिए खतरा है पाकिस्‍तान

ट्रम्‍प की ओर से दिए गए मुस्लिम विरोधी और प्रवासी विरोधी बयानों की काफी निंदा हो चुकी है। उनके विवादास्पद बयानों के चलते उनके रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी भी उन्हें निशाने पर ले चुके हैं। लेकिन वे इसकी परवाह न करते हुए अपने अभियान को आगे बढ़ाया।

उन्होंने कहा था कि परमाणु हथियारों से संपन्न पाकिस्तान विश्व के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। वहां हालात बहुत खराब हैं। ऐसे में अगर कोई पाकिस्तान पर काबू पा सकता है तो वह भारत है।

पकिस्तान ने भारत को भी अपने साथ आतंकवाद में जोड़ लिया है। भारत के पास परमाणु बम होने के साथ अपनी एक ताकतवर फ़ौज भी है। वही असल में उसे ठीक कर सकता है।

भारत के साथ मिलकर पाक को सिखाएंगे सबक

डोनॉल्ट ट्रम्‍प यहां तक कह चुके हैं कि हमें पाकिस्तान को ठीक करने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने दावा किया था कि वे पाकिस्तान को दूसरे लोगों से ज्यादा जानते हैं। उनके इस दावे की अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने आलोचना की थी।

उन्होंने कहा कि दुनिया भर में हो रहे आतंकी हमलों का डर दिखाकर ट्रम्‍प लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ट्रम्‍प के ऐसे बयान पाकिस्तान के लिए जरूर चिंता बढ़ाने वाले हैं।

भारत के लिए विशेष बात यह भी है कि डोनाल्ड ट्रम्‍प पाकिस्तान को एक बड़ी समस्या करार दे चुके हैं। उनका मानना है कि पाकिस्तान जिस स्थिति में है, उसे रोकने की जरूरत है। लाहौर में अल्लामा इकबाल टाउन के गुलशन-ए-इकबाल पार्क में मौजूद भीड़ को निशाना बना एक आत्मघाती हमला हुआ था।

ट्रम्‍प ने इस पर चिंता जताई थी कि यह अतिवादी इस्लामिक आतंकवाद है। वह इसे बढ़िया तरीके से इसे निपटाएंगे। यह हमला काफी शक्तिशाली था। ईस्टर त्योहार के अवसर पर पार्क में बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के लोग मौजूद थे। मरने वालों में कई ईसाई समुदाय के थे।

चीन को नुकसान

ट्रम्‍प भारत का समर्थन करके एशिया में शक्ति के संतुलन को बदल सकते हैं। चीन और पाकिस्तान दशकों से अमेरिका को नकदी देने वाली गाय के तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं। चीन ने ट्रेड सरप्लस की मदद से तो पाकिस्तान डबल गेम खेलकर चरमपंथी इस्लामी ताकतों से लड़ने की आड़ में अमेरिका से आर्थिक मदद लेता रहा है।

अब तक के संकेत को देखते हुए लगता है कि ट्रम्‍प जीतने के बाद इन दोनों देशों दी जाने वाली आर्थिक सहायता में कटौती करेंगे। अमेरिका में पिछले 15 सालों के अंदर 50 लाख नौकरियां खत्म हुई हैं जबकि इस अवधि में चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भारी ग्रोथ देखी गई है।

ट्रम्‍प अपने चुनावी वादे को पुराने करने के लिए अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग जॉब वापस लाने की कोशिश करेंगे। ऐसा वह तभी कर सकेंगे जब एशिया, खासतौर पर चीन के मैन्युफैक्चरिंग में लेबर कॉस्ट फायदे में टैरिफ और गैर टैरिफ बैरियर्स की मदद से सेंध लगाएं।

पाकिस्तान पर अंकुश लगाने के लिए भारत का साथ जरूरी है। उनका यह बयान भारत-पाकिस्तान संबंध की दिशा में काफी मायने रखता है। ट्रम्‍प पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता में कटौती करके पाकिस्तान के प्रति पॉलिसी को प्रभावित कर सकते हैं।

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