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जानिए, कैसे केंद्र में मोदी और यूपी में योगी सरकार ने रखी विकास की नई इबारत?

नई दिल्ली । विकास-परक शासन बेहद जटिल और तकनीकी होता जा रहा है। एक शासक के लिए यह समझना कि कैसे तकनीक का प्रयोग भ्रष्टाचार मुक्त शासन और जन-कल्याण की योजनाओं की बेहतर डिलीवरी के लिए किया जाए, बेहद जरूरी होता जा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बखूबी समझा था। बाद में कई अन्य मुख्यमंत्रियों ने इस पर अमल किया। ऐसे दौर में किसी गेरुआ वस्त्रधारी का राजदंड थामना एक असामान्य प्रयोग था।

हमारे जैसे कई विश्लेषकों को विश्वास नहीं था कि योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व को धार देने के अलावा और कुछ कर सकेंगे, लेकिन जो यह मानते थे कि 22 करोड़ आबादी, शासकीय उनींदेपन के शिकार और इसकी वजह से विकास के तमाम पैमानों पर निचले पायदान पर खड़े उत्तर प्रदेश में अगर कुछ बढेगा तो तनाव, ऐसा सोचने वाले गलत साबित हुए। योगी सरकार के हाल के कुछ फैसले विकास योजनाओं की बारीकियों की समझ रखने वालों के लिए भी चौंकाने वाले हैं। इनमें से कुछ पर केंद्र सरकार अभी अमल करने की ही सोच रही है, लेकिन योगी सरकार उन पर अमल के मार्ग पर बढ़ गई है।

सूबे का विकास राज्य के नेतृत्व पर निर्भर करता है

किसी राज्य का विकास बहुत कुछ राज्य के नेतृत्व पर निर्भर करता है, न कि बात-बात पर केंद्र सरकार का मुंह ताकने या फिर उसका सहयोग न मिलने का रोना रोने से। उत्तर-मध्य भारत में कम से कम तीन राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ लगातार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के किसानों की उपज के उचित मूल्य के लिए भावांतर भुगतान योजना को केंद्र सरकार भी लागू करने जा रही है। हालांकि दक्षिण में तेलंगाना की इसी तरह की योजना ज्यादा बेहतर दिखती है। छत्तीसगढ़ की राशन वितरण योजना भी एक उदाहरण बनी है। यह सब तब हो रहा है जब दक्षिण भारत के कई राज्यों का मानना है कि उत्तर भारत के सरकारी निकम्मेपन की सजा योजना सहायता के मद में कटौती के रूप में उन्हें झेलनी पड़ती है। ऐसी सोच पर केंद्र का तर्क है कि उसे पिछड़े राज्यों को मदद के लिए पैसा देना ही होता है, लेकिन परिवार नियोजन में असफल रहा बिहार जब पिछड़े राज्य के नाम पर विशेष राज्य के दर्जे की मांग करता है तो यह तमिलनाडु और केरल को खटकता है।

निवेश प्रस्तावों को जमीन पर उतारने की कोशिश

यह शुभ संकेत है कि उत्तर प्रदेश अ-विकास की स्थिति से निकलना चाहता है। आम तौर पर इनवेस्टर समिट के दौरान लाखों रुपये खर्चकर देश-विदेश के कुछ उद्योगपतियों का जमावड़ा किया जाता है और फिर कुछ एमओयू के जरिये मीडिया को बताया जाता है कि इतने लाख करोड़ के निवेश का वादा हुआ। पांच साल बाद नया मुख्यमंत्री फिर ऐसा ही आयोजन करता है, लेकिन लखनऊ में हाल में संपन्न इनवेस्टर मीट के बाद योगी सरकार के शीर्ष अफसर सभी निवेश प्रस्तावों की छानबीन में जुट गए हैैं। वे निवेशकों की संरचनात्मक जरूरतों को पूरा करने पर भी ध्यान दे रहे हैैं। करीब सवा चार लाख करोड़ के निवेश प्रस्तावों का अध्ययन योगी सरकार की गंभीरता को प्रकट करता है। एक ओर जहां निवेश प्रस्तावों को जमीन पर उतारने की कोशिश हो रही है वहीं दूसरी ओर कानून एवं व्यवस्था को दुरुस्त करने का अभियान भी जारी है।

‘एक जिला, एक उत्पाद योजना’

योगी सरकार का एक अन्य उल्लेखनीय फैसला ‘एक जिला, एक उत्पाद योजना’ का है। यह अवधारणा जापान से निकली और फिर दक्षिण एशिया के कई देशों में कारगर साबित हुई। योगी सरकार ने एक जिला एक उत्पाद योजना को एक अभियान का स्वरूप दिया है। जिलों में तैयार किए जाने वाले उत्पादों का चयन हो चुका है, जैसे आगरा में चमड़ा, फिरोजाबाद में कांच की चूड़ियां, मथुरा में बाथरूम-फिटिंग्स तो इलाहाबाद में अमरूद और प्रतापगढ़ में आंवला उत्पादन। इस योजना का लाभ यह होगा कि एक जिले में स्किल्ड वर्कर आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे और तकनीक के स्तर पर भी ध्यान दिया जा सकेगा। खरीददारों को जगह-जगह नहीं जाना होगा। उत्पाद अगर कृषि आधारित है तो किसानों को उपज के विपणन के लिए स्थानीय स्तर पर बेहतर मूल्य मिल सकेगा। उत्पादों पर आधारित उद्योगों के लिए स्पेशल राहत पैकेज भी देने की तैयारी है। उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने चंद दिन पहले फैसला लिया कि मंडी एक्ट में संशोधन करकेनिजी क्षेत्र के लोगों यानी स्थानीय कृषि उत्पादक संगठनों को यह अधिकार दिया जाएगा कि वे अपनी मंडी खुद स्थापित करें ताकि किसानों को प्रतियोगी बाजार मिले और वे अपनी उपज का उचित मूल्य ले सकें।

कृषि विपणन को समवर्ती सूची में लाया जाए ताकि किसानों को अंतरराज्यीय बाजार मिल सके

यह नीति एक माह पहले केंद्र सरकार को सौपी गई दलवई समिति की रिपोर्ट का हिस्सा है। किसानों की आय दोगुना करने के लिए सलाह देने वाली दलवई समिति की रिपोर्ट में पांच मुख्य संस्तुतियां हैं। सबसे महत्वपूर्ण संस्तुति यह है कि संविधान में संशोधन कर कृषि विपणन को समवर्ती सूची में लाया जाए ताकि किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए अंतरराज्यीय बाजार मिल सके। यह भी कहा गया है कि किसान-उत्पादक संगठन मंडियों को स्थानीय स्तर पर चलाएं। गांव के साप्ताहिक बाजार भी मंडियों का स्वरूप लें और सही मूल्य न मिलने पर किसान अपना अनाज सरकारी गोदामों में रख सकें। इसके एवज में उन्हें जरूरत पड़ने पर कर्ज भी दिया जाए। किसान इस कर्ज को तब लौटाए जब उसे अपने उत्पाद का अच्छा दाम मिले। इस योजना का मकसद है कि किसान स्थानीय साहूकार और आढ़तियों के शोषण का शिकार न बन सकें।

किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए व्यापक विकल्प मिलने चाहिए

दलवई समिति की संस्तुति के अनुसार ये मंडियां राष्ट्रीय विपणन ग्रिड से जुडी होंगी ताकि किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए व्यापक विकल्प मिल सकें। इसी क्रम में कोई तीन हफ्ते पहले योगी सरकार ने फैसला लिया कि किसान अपनी जमीन बगैर लैंड-यूज बदलवाए कृषि आधारित उद्योगों के लिए दीर्घकालिक लीज पर दे सकता है। इसका लाभ यह होगा कि उद्यमी निवेश कर सकेंगे और सस्ते किराये पर भूमि उपलब्ध होगी। ऐसा लग रहा है कि योगी सरकार दलवई समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैै और अन्य राज्यों से बाजी मार लेना चाहती है।

सत्ता की धमक से जमीन पर बदलाव के प्रयासों को जन-समर्थन की जरूरत होती है

विकास के मामले में यही भावना अन्य राज्यों में भी दिखनी चाहिए। आज जब देश के 21 राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों का शासन है तो केंद्र को राष्ट्रीय योजनाएं बनाने में ज्यादा कठिनाई नहीं आनी चाहिए। कठिनाई आ सकती है तो राज्यों में भ्रष्ट तत्वों के गठजोड़ से। राज्यों के नेतृत्व को इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए सक्रियता दिखानी ही होगी। योगी सरकार को भी इससे परिचित होना चाहिए कि कैसे कुछ भ्रष्ट अफसर फर्जी आंकड़े पेशकर खुले में शौच मुक्त जिले का दर्जा हासिल करने की फिराक में है या फिर प्रशासन के निचले स्तर पर किस प्रकार भ्रष्ट तंत्र की जकड़न बनी हुई है। यह सही है कि स्वच्छ भारत अभियान से न तो किसी मोदी को वोट मिलते हैैं और न ही नकल रोकने से किसी योगी को, लेकिन जब सत्ता की धमक से जमीन पर बदलाव होता दिखता है या नकलची परीक्षा छोड़ता है अथवा कूड़ागाड़ी आवाज लगाकर ‘सर्वसम्मानित नागरिकों के द्वार’ कूड़ा लेने आती है तो ऐसे प्रयासों को जन-समर्थन की जरूरत होती है।