कांग्रेस को अखिलेश यादव का साथ यूं ही नहीं पसंद आ रहा है. उसने बड़ी चालाकी से ऐसी सीटें चुनी हैं जहां उसकी जीत आसान हो सके. इसके लिए उसने गठबंधन की शर्तों के तहत सपा की कई जीती सीटें भी ले ली हैं.इसके अलावा कांग्रेस ने वह सीटें भी चुनी हैं जिन पर उसकी स्थिति दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर रही है. इसमें सपा का वोट मिलता है तो स्थिति मजबूत हो जाती है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अशोक आचार्य कहते हैं कि सपा-कांग्रेस गठबंधन में मजबूरी, जल्दीबाजी और समर्पण तीनों दिखता है. वरना कोई अपनी मौजूदा सीट दूसरी पार्टी को नहीं देता है.
अखिलेश यादव ने अपने राजनीतिक भविष्य को धार देने के लिए ऐसा किया है. यदि उन्होंने अपने विधायकों से सलाह लेकर सीटें कांग्रेस को दी हैं तो ठीक वरना इन पर भितरघात होगी. ऐसे में न कांग्रेस को फायदा होगा और न ही सपा को.
जबकि वरिष्ठ पत्रकार आलोक भदौरिया कहते हैं कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सत्ता हासिल करने का प्लान बनाया है और यहां 202 सीटों पर सत्ता मिल जाती है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए दोनों ने बड़ी सोच दिखाई है. यह गठबंधन 2017 के साथ-साथ 2019 के लिए भी है.