पेंटागन ने 97 पेज की अपनी इस रिपोर्ट में अनुमान जताया कि पाकिस्तान व अन्य मित्र देशों में इसी तरह के सैन्य अड्डे बनाना उसका अगला कदम हो सकता है। यदि चीन ऐसा करता है तो इससे भारत की सामरिक चुनौतियां और बढ़ जाएंगी।
चीन हिंद महासागर, भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर के सुदूर समुद्र में अपनी तैनाती को नियमित कर उसे जारी रखने के लिए जरूरी समर्थन जुटाकर विदेशी बंदरगाहों पर अपनी पहुंच का विस्तार कर रहा है।
यद्यपि रिपोर्ट में चिंता जाहिर की गई है कि चीन की और अधिक ठिकाने बनाने की कोशिशों पर कुछ देशों को मजबूरी में अपनी इच्छा के खिलाफ जाकर अपने किसी एक बंदरगाह पर चीनी सेना की मौजूदगी को समर्थन करना पड़ सकता है।
हालांकि चीन ने इस रिपोर्ट पर विरोध जताते हुए पाकिस्तान को अपना करीबी दोस्त बताया। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ ने कहा कि चीन और पाक के बीच कई क्षेत्रों में आपसी लाभ के सहयोगात्मक संबंध हैं।
दूसरी तरफ, अमेरिकी रिपोर्ट में चीनी सेना द्वारा समुद्र व अंतरिक्ष में शुरू अभियानों का भी जिक्र किया गया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि चीन के हैकर्स अमेरिकी सरकार के कंप्यूटरों में सेंध लगाने की कोशिश भी कर रहे हैं।
अमेरिकी कांग्रेस में पेश की गई पेंटागन की रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि चीन ने अपने रक्षा बजट और खर्च में बड़ी बढ़ोतरी की है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन के आर्थिक विकास की गति काफी धीमी होने के बावजूद उसने रक्षा खर्च बढ़ाया है। 2016 में चीन का रक्षा बजट 140 अरब डॉलर का था, लेकिन कुल खर्च 180 अरब डॉलर के पार चला गया। यह एक गंभीर चिंता का विषय है।
चीन के कदमों से भारत की चिंता
भारत न सिर्फ चीन द्वारा पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के विकास को लेकर चिंतित है बल्कि हिंद महासागर के दक्षिण-पश्चिम में जिबूती में चीन की सुदृढ़ स्थिति से भी चिंतित है। जिबूती चीन की पर्ल ऑफ स्ट्रिंग योजना का हिस्सा है जिसके तहत महासागर के चारों तरफ चीन का सैन्य ठिकाना स्थापित करने की योजना है। पेंटागन की रिपोर्ट में ग्वादर बंदरगाह के विकास को भी भारत के लिए चिंता का सबब बताया गया है क्योंकि चीन ने यहां अपनी सैन्य मौजूदगी को मजबूत करने के लिए विकास के कदम उठाए हैं।