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गोरखपुर: मठ से बाहर का प्रत्याशी, रुक गया बीजेपी का विजय रथ

गोरक्षधाम मठ से महंत दिग्विजयनाथ 1967 में पहली बार गोरखपुर की सदर सीट से निर्दलीय सासंद बने थे लेकिन 1980 में हिन्दू महसभा के टिकट पर बीजेपी समर्थित जनता दल के प्रत्याशी को गोरक्षपीठाधीश्वर रहे महंत अवैद्यनाथ द्वारा हराना सबसे चर्चित घटना थी। आज मठ के अंदर से लेकर मुख्य द्वार तक दबी जुबान में फिर से यह चर्चा बीजेपी नेतृत्व के फैसले पर सवाल खड़े कर रही है कि उपचुनाव में मठ की अनदेखी की वजह से ही बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा।

मठ की ताकत को फिर भूल गई बीजेपी
महंत अवैद्यनाथ द्वारा 1980 में बीजेपी के खिलाफ जीत दर्ज करना हो या 1989 से लगातार सदर सीट पर मठ का कब्जा, यह साफ दर्शाता है कि क्षेत्र की राजनीति का मतलब ‘मठ’ ही रहा है। सीएम योगी के सीट छोड़ने के बाद मठ के अंदर प्रधान पुजारी कमलनाथ को अगला उत्तराधिकारी माना जा रहा था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्षेत्र में एनबीटी द्वारा बातचीत करने पर सामने आया कि उपचुनाव में भी वहां के लोग अगला प्रत्याशी मठ से ही देखना चाह रहे थे। इसमें महंत योगी आदित्यनाथ की 1988 में 26 वर्ष की उम्र में 26 हजार मतों से जीत से लेकर 2014 में 3 लाख से अधिक मतों के भारी अंतर की जीत का जिक्र बार-बार लोगों की जुबान पर आता रहा। इससे वोटरों ने मठ का प्रत्याशी न होने पर दूसरी पार्टी की तरफ रुख किया। 

5 प्रतिशत के हेरफेर से बीजेपी को 21 हजारी झटका
बीजेपी को 2014 में कुल वोट का 51.80 प्रतिशत मिला था और तत्कालीन प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ ने एसपी की राजमति निषाद को तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। लेकिन इस बार 46.53 प्रतिशत वोट पाकर बीजेपी, एसपी प्रत्याशी प्रवीण कुमार निषाद से 21 हजार से ज्यादा मतों से हार गई। बीजेपी के क्षेत्रीय प्रवक्ता सतेंद्र सिन्हा ने इसके लिए ‘ठगबंधन’ को जिम्मेदार ठहराया। सतेन्द्र के मुताबिक, एसपी-बीएसपी के अचानक गठबंधन से कुछ साइलंट वोट एसपी प्रत्याशी को चले गए। 

शहरी विधानसभा से बिगड़ा खेला 
सदर सीट से 5 बार सांसद बने सीएम योगी को शहरी विधानसभा ही संसद तक पहुंचाती थी। पांच विधानसभाओं में यहां अकेले योगी 1 लाख से ऊपर की बढ़त बनाकर अन्य विधानसभाओं के कम वोट को बराबर कर लेते थे। 2014 में यहीं से जनता ने उन्हें 1.33 लाख मत देकर एसपी प्रत्याशी पर 1.02 लाख की बढ़त दिलाई थी। लेकिन इस बार बीजेपी के उपेंद्र दत्त शुक्ल को केवल 90,313 वोट मिले। वहीं एसपी के प्रवीण निषाद को 65,736 वोट मिले। जोकि 2014 के मुकाबले एसपी को मिले वोट से दोगुने थे। लाख मतों से ज्यादा बढ़त दिलाने वाली इस सीट पर बीजेपी 24,577 वोटों की ही बढ़त हासिल कर पाई। इस वजह से बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा।