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गलत संदेश वाला बयान

हामिद अंसारी ने उपराष्ट्रपति का पद छोड़ने के ठीक एक दिन पहले राज्यसभा टीवी को दिए गए साक्षात्कार में जिस तरह यह कहा कि मुस्लिम समाज असुरक्षा के भाव से ग्रस्त है उससे एक राजनीतिक तूफान खड़ा होना ही था। स्वाभाविक रूप से भाजपा के नेताओं को यह बयान रास नहीं आया। हामिद अंसारी की जगह उपराष्ट्रपति का पद संभालने वाले वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपनी-अपनी तरह से जवाब दिया। भाजपा के कुछ नेताओं ने खुलकर यह बोला कि अंसारी ने जो कुछ कहा वह अल्पसंख्यकवाद की राजनीति को बढ़ावा देने वाला है।

कुछ ने तो यह भी कहने से गुरेज नहीं किया कि अंसारी रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक संरक्षण की तलाश में हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने हामिद अंसारी के विदाई समारोह में यह खास तौर पर रेखांकित किया कि उपराष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद वह मुक्ति का अहसास करेंगे। प्रधानमंत्री का आशय यह था कि उनका अधिकांश वक्त मुस्लिम समाज के बीच काम करते हुए बीता और इसीलिए उनकी सोच भी इस समाज के इर्द-गिर्द घूमती रही। उन्होंने यह याद दिलाया कि अंसारी एक राजनयिक के रूप में ज्यादातर समय मुस्लिम बहुल पश्चिम एशिया के देशों में रहे। इसके अतिरिक्त वह अल्पसंख्यक आयोग में अपनी सेवाएं देने के साथ ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी रहे। उपराष्ट्रपति पद पर आसीन रहने के दौरान यह संभव है कि वह संवैधानिक पद की मजबूरियों के कारण खुलकर अपनी बात न कह पाए हों, लेकिन अब उन पर कोई बंदिश नहीं होगी। प्रधानमंत्री का तात्पर्य यही था कि अगर अंसारी अल्पसंख्यकवाद की राजनीति करना चाह रहे हैं तो वह इसके लिए स्वतंत्र हैं।

यह कितना विचित्र है कि पार्टी लाइन और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की अपेक्षा वाले एक जिम्मेदार पद पर दस साल तक रहने के बावजूद अंसारी अपनी सीमित सोच से ऊपर नहीं उठ सके। उन्हें राष्ट्रपति पद पर आसीन रहे प्रणब मुखर्जी से प्रेरणा लेनी चाहिए थी। लंबे समय तक कांग्रेसी रहे प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति बनने के बाद भी हमेशा अपने मन की बात बोली और कई बार ऐसी बातें भी कहीं जो भाजपा को असहज करने वाली थीं, लेकिन उन्होंने कभी अपनी सोच में संकीर्णता प्रदर्शित नहीं की। उन्होंने जिस गरिमापूर्ण तरीके से विदाई ली उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। कम से कम तीन अवसरों पर प्रधानमंत्री ने भी उन्हें पिता के समान बताया। प्रणब मुखर्जी के विपरीत अंसारी ने अपने पद की गरिमा के विपरीत और एक गैर जिम्मेदाराना बयान देकर न केवल अपनी किरकिरी कराई, बल्कि जाने-अनजाने हिंदू-मुस्लिम के बीच विभाजन बढ़ाने का भी काम किया। 

मुस्लिम समाज के किसी नेता की ओर से वैसे विचार व्यक्त करना कोई नई बात नहीं जैसे अंसारी ने व्यक्त किए। आजादी के पहले मुस्लिम लीग के नेता ऐसे ही बयानों के आधार पर अपने समुदाय के लोगों को हिंदुओं से अलग करते रहे। वे इस काम में इस हद तक सफल रहे कि पाकिस्तान के रूप में मुस्लिमों का एक अलग देश बनवाने में कामयाब हुए। गांधी जी के न चाहते हुए भी देश का बंटवारा हो गया। जो मुसलमान भारत में रह गए वे उस समय असुरक्षा की भावना से ग्रस्त थे। उनके मन में हिंदुओं के प्रति कुछ शंकाएं होना स्वाभाविक था, लेकिन समय के साथ उन्हें यह अहसास होता गया कि हिंदू समाज सह-अस्तित्व की भावना रखता है और उसके बीच रहने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होने वाली। धीरे-धीरे मुस्लिम समाज के लोग भारत में सहज तरीके से रहने लगे, लेकिन कई राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए उनमें जानबूझकर असुरक्षा की भावना भरना जारी रखा।

इसके लिए तुष्टीकरण का भी सहारा लिया गया। इसके चलते मुस्लिम समाज में विशेषाधिकार हासिल करने की भावना बढ़ने लगी। बीते दशकों में जो तमाम दंगे हुए उनके सहारे भी मुस्लिम समाज को यह अहसास कराया गया कि वे यहां सुरक्षित नहीं हैं और उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता है। वामपंथी सोच के कई बुद्धिजीवियों और मीडिया के एक वर्ग के लिए भी मुस्लिम हितों की बात करना एक तरह से फैशन बन गया। वेंकैया नायडू ने यह सही कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में रहती है और वे सबसे अधिक यहीं सुरक्षित हैं। उनका यह सवाल ही अंसारी के बयान का जवाब है कि अगर इतनी बड़ी आबादी असुरक्षित महसूस कर रही होगी तो भारतीय लोकतंत्र दुनिया में विख्यात कैसे हो सकता है? यह ठीक है कि भाजपा की अपनी एक अलग विचारधारा है और उससे तमाम मुसलमान सहमत नहीं, लेकिन इसके आधार पर यह नतीजा निकालना ठीक नहीं कि वे असुरक्षा से ग्रस्त हैं। जनसंघ से लेकर भाजपा तक की यात्रा एक लंबी यात्रा रही है। अब भाजपा की विचारधारा देश की मुख्यधारा में अपनी जमीन मजबूत कर चुकी है। इससे उन लोगों का खिन्न होना स्वाभाविक है जो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते चले आ रहे हैं। अंसारी को मुस्लिम नेता की तरह बयान देने से पहले यह सोचना चाहिए था कि इससे मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ विश्व समुदाय को गलत संदेश जाएगा। यह एक तथ्य है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अधिकांश मीडिया अभी भी मोदी सरकार को उन वामपंथी बुद्धिजीवियों की आंखों से ही अधिक देख रहा जो इससे परेशान हैं किआखिर भाजपा अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ इस तेजी से आगे कैसे बढ़ रही है? ये बुद्धिजीवी कुछ भी कहें, भाजपा अपनी इस राष्ट्रवादी सोच से समझौता नहीं करने वाली कि देश के सभी नागरिक एक समान हैं। 

हामिद अंसारी का बयान इसलिए हकीकत के उलट है, क्योंकि इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां पर दंगे न के बराबर हुए हैं। गुजरात में भी गोधरा कांड के बाद सांप्रदायिक हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। यही बात मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए भी कही जा सकती है। दरअसल इस नतीजे पर पहुंचने का कोई आधार ही नहीं कि भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिम असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? सच तो यह है कि तमाम मुस्लिम यह महसूस कर रहे हैं कि भाजपा उसकी समस्याओं के समाधान पर ध्यान दे रही है। तीन तलाक के मसले पर भाजपा ने जिस तरह पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में स्टैंड लिया उससे इस समुदाय का एक हिस्सा भाजपा की ओर आकर्षित हुआ है। अयोध्या विवाद को लेकर शिया मुस्लिमों का यह जो रुख सामने आया कि विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए और मस्जिद वहां से दूर किसी मुस्लिम बहुल इलाके में बननी चाहिए उससे भी पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय की सोच बदल रही है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार सुनिश्चित करने वाले अनुच्छेद 35-ए के मामले में भी मुस्लिम महिलाओं को यह अहसास होने लगा है कि यह व्यवस्था खुद उनके हितों के प्रतिकूल है। हामिद अंसारी कुछ भी कहें, यह मानने का कोई ठोस आधार नहीं कि मुस्लिम समुदाय डर के साये में रह रहा है। हां, यह अवश्य कहा जा सकता है कि कांग्र्रेस की पहल और प्रभाव से उपराष्ट्रपति बने अंसारी कर्ज चुकाने के भाव से कांग्र्रेस की अल्पसंख्यकवाद की राजनीति को बल देने की कोशिश कर रहे हैं।

 

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