चार साल पहले केदारनाथ धाम में आई तबाही के जख्म अभी भी लोगों के मन में ताजा हैं। इस बीच एक और केदारनाथ मंदिर के बारे में एक और खतरनाक बात सामने आई है।
मंदिर के आसपास भवन निर्माण कार्य सही नहीं है। यह क्षेत्र एवलांच के प्रति संवेदनशील है, जिसके चलते यहां किसी भी प्रकार का निर्माण सुरक्षित नहीं है। यह बात करीब 23 वर्ष पूर्व भारतीय भू-गर्भीय सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र का सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट में कही थी। अगर इस रिपोर्ट पर ध्यान दिया जाता तो 16/17 जून 2013 की आपदा में केदारनाथ में इतने बड़े स्तर पर तबाही नहीं होती।
जीएसआई के वैज्ञानिक दीपक श्रीवास्तव और उनकी टीम ने 1991 से 1994 तक केदारनाथ मंदिर और आसपास के क्षेत्रों का गहन सर्वेक्षण कर वहां के हालातों का विस्तृत अध्ययन किया था। चार वर्ष में टीम ने कई बार इस क्षेत्र का दौरा कर वहां रहते हुए हर मौसम के हिसाब से हालातों का जायजा लेकर रिपोर्ट तैयार की थी। ऑन इंटीग्रेटेड आइस, स्नो एवलांच जियोलॉजिकल स्टडीज इन मंदाकिनी वैली अराउंड केदारनाथ, डिस्ट्रिक्ट चमोली, उत्तर प्रदेश नाम से जारी इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि केदारनाथ मंदिर के आसपास निर्माण कार्य सही नहीं है।
जो हो रहा है, उसे रोक देना चाहिए। कहा गया कि केदारनाथ समुद्र तल से 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तीन ओर से पर्वतों और ग्लेशियरों से घिरा हुआ है। केदारनाथ बाजार दो नदियों सरस्वती और मंदाकिनी के मध्य में संकरे भाग में स्थित है। ऐसे में मंदिर के आसपास किसी भी प्रकार का निर्माण सुरक्षित नहीं है, लेकिन जीएसआई की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए केदारनाथ में सरकारी और गैर सरकारी भवनों का निर्माण बेरोकटोक होता रहा।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्र में मानकों को धता बताते लोगों ने तीन मंजिले भवन तक तैयार किए। हैरत की बात यह है कि आपदा में जर्जर हो चुके लगभग डेढ़ सौ आवासीय/व्यावसायिक भवनों में 90 से अधिक को ध्वस्त कर केदारनाथ में पुनर्निर्माण के तहत तीर्थ पुरोहितों के लिए नए भवन बनाए जा रहे हैं, जिसमें 40 भवन तैयार होने वाले हैं, ये सभी भवन दोमंजिला है।