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घोटाला:कहीं दफन न हो जाए सरकारी रकम को एफडीआर कराने का मामला

 देव श्रीवास्तव
लखीमपुर-खीरी।
लोहिया व इंदिरा आवासों की अवशेष राशि की एफडी कराने का मामला सामने है। मामला गंभीर है। उससे भी गंभीर है कि प्रशासनिक व बैंक अधिकारियों का कार्रवाई न करना। प्रशासनिक अधिकारी जहां मामले को उच्चाधिकारियों तक पहुंचाने की बात कहकर कार्रवाई से कतरा रहे हैं वहीं बैंक अधिकारी कार्रवाई तो दूर जांच तक को तैयार नहीं। इससे यह शक पैदा हो रहा है कि कहीं मामले को दफन करने की कोशिश तो नहीं की जा रही।
गौरतलब रहे कि विकास भवन स्थित इलाहाबाद बैंक की शाखा में इंदिरा आवास व लोहिया आवास के पात्रों को लाभांवित करने के लिए करीब बजट आया था। इसमें इंदिरा आवास का पांच करोड़ व लोहिया आवास का 10 करोड़ रुपए अवशेष रह गया था। उधर बैंक को मिला वार्षिक एफडीआर लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया था। मार्च क्लोजिंग से पहले इस लक्ष्य को प्राप्त करना था। सूत्र बताते हैं कि बैंक में बजट की मौजूदगी और दूसरी तरफ एफडीआर के लक्ष्य ने बैंक प्रबंधक को लाखों की रकम कमाने का जरिया दिखा दिया। मैनेजर साहब ने इंदिरा आवास व लोहिया आवास के बजट को फर्जी एफडीआर खुलवाने में इस्तेमाल कर दिया। इन एफडी में अधिकतर 90-90 लाख की हैं जबकि कुछ 50-50 लाख की खोली गई हैं। इस तरह सरकार का पूरा बजट एफडीआर में ही खपा दिया गया।
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मामला तब फंसा जब यह प्रकरण उजागर हो गया। एक तरफ बैंक प्रबंधक इस रकम को एफडीआर से वापस खातों में पहुंचाए जाने का ताना-बाना बुन रहे हैं। उधर इसकी भनक विकास भवन के अधिकारियों तक पहुंच गई। मामले में जब इलाहाबाद बैंक के जिला मुख्य शाखा के प्रबंधक से बात की गई तो उन्होंने प्रकरण की जांच कराने की बात कहने की बताए उल्टे इसका सुबूत मांगना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी धन को एफडीआर में डाले जाने का सुबूत लेकर आओ तभी कार्रवाई होगी। हालांकि परियोजना अधिकारी ने मामला संज्ञान में आने की बात कही। फिर भी कार्रवाई की बजाए मामले को उच्चाधिकारियों के संज्ञान में लाने की बात कहकर इतिश्री कर ली। 
अब सवाल उठता है कि 15 करोड़ जैसे बड़े प्रकरण की असलियत जानने में विकास भवन के जिम्मेदार और इलाहाबाद के अधिकारी जांच से क्यों कतरा रहे हैं। यदि कार्रवाई न हुई तो न केवल यह मामला दफन होकर रह जाएगा बल्कि इसी प्रकार सरकारी धन के दुरुपयोग की परिपाटी चल सकती है। 

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