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कश्मीर पर कठोर फैसले की दरकार

07_05_2017-6sanjay_guptaसीमा पर पाकिस्तान की भारत विरोधी हरकतें और कश्मीर घाटी के हालात मोदी सरकार के लिए फिर से एक बड़ा सिरदर्द बन गए हैं। पिछले दिनों पाकिस्तानी सेना ने जिस तरह संघर्ष विराम का उल्लंघन करके सेना और सीमा सुरक्षा बल के एक-एक जवानों को मार कर उनके शव क्षत-विक्षत किए उससे यह साफ हो गया कि वह भारत को उकसाने और टकराव बढ़ाने पर आमादा है। इसके पहले उसने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाकर भारत को विचलित करने के साथ ही संबंध सुधार की संभावनाओं पर पानी फेर दिया था।

जब जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से लगती सीमा पर हालात खतरनाक बने हुए हैं तब घाटी की स्थितियां भी बिगड़ती जा रही हैं। कुपवाड़ा में सैन्य शिविर पर हमले के बाद कश्मीर में आतंकियों की गतिविधियों में खासी तेजी आई है। घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में तेजी आने के साथ ही बैंक लूटने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। आम धारणा है कि अनंतनाग उपचुनाव को फिर से स्थगित करने के पीछे भी कानून एवं व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति जिम्मेदार है। इसमें भी कोई दोराय नहीं कि सीमा पर दो जवानों के अंग भंग की घिनौनी घटना को अंजाम देकर पाकिस्तानी सेना ने भारत के साथ-साथ अपनी सरकार को भी एक संदेश दिया है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के नए सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को यह बताना चाह रहे हैं कि भारत और कश्मीर के मामले में वही होगा जो वह चाहेंगे। वह भारत से तनाव बढ़ाने की पाकिस्तानी सेना की पुरानी नीति पर ही चलते रहने के हिमायती दिख रहे हैं।
कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना का उग्र रवैया नया नहीं है। वह एक के बाद एक युद्ध में भारतीय सेना के हाथों पिटने के बावजूद कश्मीर को छल-बल से हथियाने का ख्वाब पाले हुए है। चूंकि पाकिस्तानी सेना यह जान गई है कि भारतीय सेना से सीधे पर तौर पर लड़ना उसके बस की बात नहीं इसलिए वह आतंकी संगठनों को पाल-पोस रही है। कश्मीर को तूल देने से उसे अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के साथ ही नागरिक सरकार को दबाव में लेने का बहाना भी मिलता है। कश्मीर के लिए लड़ने का दिखावा करके उसे अपने लोगों को यह संदेश देने में भी सहूलियत मिलती है कि वह पाकिस्तान के अधूरे काम को पूरा करने को लेकर गंभीर है। आज पाकिस्तान में भारत का हौवा खड़ाकर अपने पक्ष में समर्थन जुटाना सबसे आसान काम है। शायद अब इस काम में कोई भी पीछे नहीं रहना चाह रहा है। पाकिस्तान भले ही भारत की तुलना में एक छोटा देश हो, लेकिन वह हथियारों के मामले में भारत की बराबरी करने के लिए उतावला है। पाकिस्तानी सेना के अफसरों को इसमें ही अपना हित नजर आता है कि हथियारों की होड़ बनी रहे। इस बहाने उन्हें मनमानी रक्षा खरीद करने और उसके जरिये अपने वारे-न्यारे करने में आसानी होती है। पाकिस्तान के भारत विरोधी रुख के पीछे एक बड़ा कारण चीन का उसकी पीठ पर हाथ होना है। चीन सरकार प्रस्तावित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को गुलाम कश्मीर से गुजारना चाहती है। भारत को इस पर आपत्ति है, क्योंकि यह हिस्सा अविभाज्य जम्मू-कश्मीर का अंग है। पाकिस्तान को यह लगता है कि यह आर्थिक गलियारा उसके भाग्य को बदल देगा इसलिए वह चीन को मनचाही छूट दे रहा है। इसके बदले चीन पाकिस्तान की हर तरह से सहायता कर रहा है। वह भारत के न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप का सदस्य बनने में रोड़ा अटकाने के साथ जैशे मोहम्मद के आतंकी सरगना मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी भी नहीं लगने दे रहा है।
चीन के अंध समर्थन से उत्साहित पाकिस्तान जैशे मोहम्मद के साथ-साथ भारत को निशाना बनाने वाले लश्करे तोइबा और हिजबुल मुजाहिदीन सरीखे आतंकी संगठनों को भी संरक्षण देने में जुटा हुआ है। वह उन आतंकी संगठनों की पीठ पर भी हाथ रखे हुए है जो अफगानिस्तान के लिए खतरा बने हुए हैं। चूंकि पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन कश्मीर में घुसपैठ करने की फिराक में रहते हैं इसलिए उनकी मदद करने के इरादे से पाकिस्तानी सेना आए दिन संघर्ष विराम का उल्लंघन करती रहती है। उसकी यह भी कोशिश रहती है कि ज्यादा से ज्यादा कश्मीरी युवा बंदूक के बल पर भारत का विरोध करें। इन युवाओं को भड़काने वाले कई संगठन कश्मीर घाटी में भी सक्रिय हैं। ऐसे संगठनों पर काबू पाने की जिम्मेदारी पीडीपी के नेतृत्व वाली महबूबा मुफ्ती सरकार की है, लेकिन वह नाकाम साबित हो रही है। आतंकी और अलगाववादी तत्वों के खिलाफ महबूबा सरकार की निष्क्रियता भाजपा और पीडीपी के मिलकर सरकार बनाने के औचित्य पर सवाल खड़े कर रही है। यह किसी से छिपा नहीं कि पीडीपी के तमाम नेता अलगाववादियों के हितैषी हैं। शायद इसी कारण पीडीपी का गढ़ माना जाने वाला दक्षिण कश्मीर कहीं अधिक उपद्रव ग्रस्त है। अब यह धारणा तेजी से गहरा रही है कि भाजपा को पीडीपी से मिलकर सरकार बनाने से कुछ हासिल नहीं हुआ। होना यह चाहिए था कि राज्य सरकार घाटी के अलगाववादियों, पाकिस्तान परस्त तत्वों और पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ाई बरतती और वहां की शांतिप्रिय जनता का नेतृत्व करती, लेकिन महबूबा मुफ्ती इस मोर्चे पर विफल हो रही हैं। उलटे वह कश्मीर को अशांत करने वाले तत्वों से बातचीत की हिमायत कर रही हैं। पिछले दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात में उन्होंने यही कहा कि भारत सरकार को कश्मीर में सभी से बात करनी चाहिए। मोदी सरकार इसके पक्ष में नहीं। उसने सुप्रीम कोर्ट में भी यह स्पष्ट कर दिया कि अलगाववादियों से कोई बात नहीं की जाएगी। आजादी की बेजा मांग करने वालों से बात करने का कोई मतलब नहीं, लेकिन मोदी सरकार को यह भी देखना होगा कि घाटी के हालात कैसे सुधरें?
पिछले कुछ समय से और खासकर श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव के बाद से घाटी में हालात तेजी से बिगड़ते दिख रहे हैं। एक ओर जहां सुरक्षा बलों पर आतंकियों के हमले बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर पत्थरबाजी भी। अब तो छात्र-छात्राएं भी पत्थरबाजी में लिप्त हैं। सुरक्षा बलों की कठिनाई यह है कि उन्हें ही बार-बार यह नसीहत दी जा रही है कि वे हर हाल में संयम बरतें और हथियारों का इस्तेमाल न करें। इसका नतीजा यह है कि पत्थरबाज और अन्य उपद्रवी तत्व दुस्साहसी हो रहे हैं। कश्मीर के साथ-साथ सीमा के हालात जिस तरह खराब हो रहे हैं उन्हें देखते हुए मोदी सरकार को जल्द ही कुछ ठोस एवं निर्णायक कदम उठाने होंगे। वैसे भी महबूबा यह कहकर सारा दारोमदार प्रधानमंत्री पर ही डालती दिख रही हैं कि वही कश्मीर समस्या हल कर सकते हैं। मोदी पर यह दबाव पहले से ही है कि वह सीमा पर जवानों के साथ की गई बर्बरता का जवाब पाकिस्तान को दें। इस मसले पर विपक्षी दल उन्हें घेर भी रहे हैं और उन पर तंज भी कस रहे हैं। इसके पहले जब उड़ी में सेना के जवानों पर हमला हुआ था तो उसके जवाब में सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी। यह कहना कठिन है कि मोदी सरकार एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाएगी या नहीं, लेकिन इतना तय है कि उसे पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देना ही होगा।

 

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