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ऐसा क्या हुआ कि श्रीहरि बन गए अश्व

lord_harimake_hourse_15_11_2016पुराणों में एक बहुत ही रोचक कथा का उल्लेख मिलता है। इस कथा में बताया गया है कि किस तरह श्रीहरि को अश्व और माता लक्ष्मी को अश्वी बनना पड़ा। हुआ यूं कि…

एक बार श्रीहरि वैकुण्ठधाम में लक्ष्मी के साथ मौजूद थे। तभी वहां उच्चैश्रवा ( यह इन्द्र के अश्व का नाम है। यह अश्व समुद्र मंथन के दौरान जो चौदह वस्तुएं प्राप्त हुई थीं, उनमें से एक था। इसे देवराज इन्द्र को दे दिया गया था।) नामक अश्र आया।

यह अश्व इतना सुंदर था कि माता लक्ष्मी उसे एकटक देखते ही रह गईं। श्रीहरि ने जब यह दृश्य देखा तो उन्हें ठीक नहीं लगा। और उन्होंने अश्व से लक्ष्मी का ध्यान हटाना चाहा। लेकिन लक्ष्मी जी अश्व देखने में ही तल्लीन रहीं।

श्रीहरि ने इस बात को अवहेलना समझा। और उन्हें क्रोध आ गया। और उन्होंने शाप दिया, ‘हे लक्ष्मी तुम इसी समय अश्वी बन जाओ।’ जब लक्ष्मी जी की तल्लीनता टूटी तो उन्होंने क्षमा मांगी। उन्होंने कहा में आपके वियोग में कैसे रहूंगी। तब विष्णु जी बोले, यदि तुम इसी रूप में संतान उत्पन्न करोगी तभी तुम्हारी मुक्ति संभव है। और तुम्हें इस शाप से भी छुटकारा मिल जाएगा।

इस तरह लक्ष्मी जी अश्वी बन गईं। और यमुना-तमसा नदी के संगम पर रहने लगीं। वह नित्य देवाधिदेव भगवान शिव की आराधना करने लगीं। कुछ दिनों बाद शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ प्रकट हुए। तब लक्ष्मी जी ने सारा वृतांत सुनाया। तब शिव ने कहा, मैं इस बारे में श्रीहरि से बात करूंगा। और वह अश्व रूप धारण कर संतानोपत्ति करें।

अब समस्या ये थी श्रीहरि को कैसे अश्व रूप धारण करवाया जाए। तब शिव ने अपने एक गण चित्ररूप को दूत बनाकर श्रीहरि के पास भेजा। और उसने सारी बातें कह सुनाईं। विष्णु जी ने शिव की बात मान ली और वह अश्व बनकर अश्वी रूप में मौजूद लक्ष्मी जी के साथ रहने लगे।

कुछ समय बाद उनको एक संतान की प्राप्ति हुई। लेकिन लक्ष्मी और विष्णु जी वैकुण्ठ धाम चले गए तब उस बालक का पालन-पोषण कि जिम्मेदारी राजा ययाति के पुत्र तुर्वसु को सौंपी गई। ऐसा इसीलिए क्योंकि वह संतान हीन थे। और उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था। इस बालक कान नाम हैहय रखा गया। हैहयवंशी, हैहय के ही वंशज थे।

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