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इस गांव में पहाड़ से आने वाले पानी से फसल को मिलती है जिंदगी

बिलासपुर वन परिक्षेत्र के खोंदरा सर्किल स्थित बांका के पहाड़ से आने वाला पानी अब व्यर्थ नहीं बहता है। इस पानी को न केवल एकत्र किया जा रहा है बल्कि इसके जरिए फसल को जिंदगी भी दी जा रही है। वन प्रबंध समिति ने बिना किसी सरकारी मदद श्रमदान करके नहर का निर्माण किया है। इसी नहर के जरिए तालाब में पानी का भराव होता है और खेतों तक पहुंचता है।

बिलासपुर वन परिक्षेत्र के खोंदरा सर्किल स्थित बांका गांव में सिंचाई की किल्लत थी। साल दर साल कम बारिश से किसानों की चिंता बढ़ गई थी। अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है। गांव में यह खुशहाली वहां की वन प्रबंधन समिति के कारण आईहै। गांव में वन विभाग ने तीन तालाब का निर्माण कराया है। समिति ने इन तालाबों में सालभर पानी भराव के लिए पहाड़ से बहने वाले पानी को वहां तक पहुंचाने की योजना बनाई। दरअसल पहले पहाड़ का पानी बगदेवा नाले में बह जाता था।

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इस पानी को तालाब तक पहुंचाने के लिए दो किलोमीटर लंबी नहर बनाई गई। इसका निर्माण श्रमदान से किया गया। इसके लिए गांव का हर एक नागरिक सामने आया। ग्रामीणों ने इसके लिए दिनरात श्रमदान किया और अपने इरादे पर कामयाब हो गए। तीनों तालाब में पहाड़ का पानी का भराव हो रहा है। हालांकि इसके बाद भी समस्या दूर नहीं हुई थी। क्योंकि तालाब का पानी खेतों तक पहुंचाना था। लिहाजा इसके लिए फिर से श्रमदान करके छोटी- छोटी नहर बनाई गई। हालांकि इस दौरान आर्थिक दिक्कत आ रही थी। इसे लेकर वन विभाग से चर्चा की गई। विभाग ने आस्था मूलक फंड से 2 लाख की मदद की। इस नहर से 120 से 130 एकड़ खेतों की सिंचाई हो रही है।

राजधानी में होगा प्रेजेंटेशन

बांका वन प्रबंध समिति की इस उपलब्धि को इस बार राजधानी में दिखाया जाएगा। राज्योत्सव के दौरान इसका प्रेजेंटेशन किया जाएगा। मैदानी अमला इसकी तैयारी में जुटा है। नहर, तालाब सभी की तस्वीरें एकत्र की जा रही है।

अन्य गांवों में हो रहा प्रयोग

बांका वन प्रबंधन समिति की इस पहल को अब सर्किल के दूसरे गांव मेंलागू की जा रही है। समिति के माध्यम से ग्रामीणों को श्रमदान के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कनई समेत कुछ गांव से बेहतर रिस्पांस भी मिलने लगा है।

वनमंडल – बिलासपुर

गांव – बांका

जनसंख्या – 735

परिवार – 272

बांका वन प्रबंधन समिति ने ग्रामीणों को श्रमदान के लिए प्रेरित किया है। उनकी लगन का नतीजा है कि पहाड़ का पानी अब बेवजह नहीं बहता है। बल्कि समिति द्वारा निर्मित तालाब में भरता है। इससे किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल जाता है।

श्रमदान से कठिन कार्य भी आसानी से हो जाता है। ग्रामीणों की दृढ़ निश्चिय के कारण यह जंगल व पहाड़ के पानी को एकत्र करने में सफलता मिली है। इस कार्य को उच्च स्तर पर भी सराहा गया है।

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