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इतिहास में हुआ ऐसा पहली बार, KGMU में हुआ 11 माह की बच्ची का ऑपरेशन, ये थी बीमारी

लखनऊ.केजीएमयू के डॉक्टरों ने 11 महीने के बच्ची के दिल का ऑपरेशन कर मंगलवार को उसकी जान बचा ली। बच्ची के दिल में अलग-अलग साइज के कुल 3 छेद थे। ऑपरेशन के समय उसके बॉडी का वेट 6 किलो था। उसके कम वेट को देखते हुए डॉक्टर भी ऑपरेशन को लेकर सोचने पर मजबूर हो गए थे, लेकिन बाद में उन्होंने उसका ऑपरेशन करने का निर्णय लिया।आखिरकार 5 घंटे के ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने उसके दिल में छेद को बंद करने में कामयाबी पाई। बताया जाता है क‍ि केजीएमयू के इत‍िहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब 11 महीने की बच्ची का ऑपरेशन क‍िया गया। 
 इतिहास में हुआ ऐसा पहली बार, KGMU में हुआ 11 माह की बच्ची का ऑपरेशन, ये थी बीमारी

आगे पढ़‍िए क्या थी बच्ची को प्रॉब्लम…

-यूपी के बस्ती निवासी राजेन्द्र प्रसाद किसान हैं। उनकी 11 महीने की बच्ची को निमोनिया के अलावा सांस लेने में प्रॉब्लम हो रही थी। उसकी पसलियां भी चल रही थीं। उसके लंग्स में इंफेक्शन भी हो गया था।
-घरवालों ने बस्ती में ही डॉक्टरों को दिखाया। इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती भी कराया गया, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। इसके बाद पर‍िजन बच्ची को लेकर केजीएमयू आ गए। यहां डॉक्टरों ने दिल की बीमारी की आशंका जाहिर की। बच्ची को कॉर्डियो वैस्कुलर थोरैसिक सर्जरी डिपार्टमेंट (सीवीटीएस) में रेफर कर दिया गया।
-बच्ची की जांच कराई गई। उसके दिल में 3 अलग-अलग साइज के छेद होने के बारे में जानकारी हुई। पहले छेद की लंबाई डेढ़ सेंटीमीटर, दूसरे की 1.5 सेमी और तीसरे छेद की 0.8 सेमी थी।
-डॉक्टरों ने बच्ची का ऑपरेशन करने का डिसीजन लिया, लेकिन जब बच्ची का वजन कराया गया तो वेट 6 किलो निकला। इस पर डॉक्टर भी सोचने को मजबूर हो गए। आखिरकार उन्होंने बच्ची की बिगड़ती सेहत को देखते हुए मंगलवार को उसकी जान बचाने का निर्णय लिया।
-इसके लिए सीवीटीएस के डॉ. अम्बरीश कुमार ने 5 डॉक्टरों की एक टीम तैयार की। जिसमें डॉ. शेखर टंडन, डॉ. शैलेन्द्र कुमार और डॉ. दिनेश कौशल को खास तौर पर शामिल किया गया। पूरा ऑपरेशन करीब 5 घंटे तक चला। इसके बाद डॉक्टरों को बच्ची के दिल के अंदर के तीनों छेद को बंद करने में सफलता मिली।

अभी तक 10 साल से कम उम्र का नहीं होता था ऑपरेशन

-केजीएमयू सीवीटीएस विभाग के डॉ. अम्बरीष कुमार के मुताबिक, इस प्रकार के बहुत ही कम मामले सामने आते हैं। जब इतनी कम उम्र में किसी बच्ची को दिल में 1 से ज्यादा छेद की बीमारी हो। छेद की वजह से ही बच्ची का वजन नहीं बढ़ रहा था।
-अभी तक हम लोग 10 साल से कम आयु वाले बच्चों का ऑपरेशन नहीं करते थे, लेकिन अब हमारे विभाग में इस प्रकार के ऑपरेशन भी मुमकिन होने लगे हैं। केजीएमयू के इतिहास में मंगलवार को इस तरह का पहला ऑपरेशन हुआ है।

दिल के दो हिस्सों के बीच था छेद

-ऑपरेशन में शामिल डॉ. शेखर टंडन के मुताबिक, इस बीमारी की जानकारी गर्भावास्था के दौरान ही अल्ट्रासाउंड के जरिए पता लगा ली जाती है। हृदय के दोनों हिस्सों के बीच कोई छेद हो तो सामान्य रूप से खून का प्रवाह अधिक दबाव वाली जगह से कम दबाव वाली जगह की ओर होना चाहिए, यानी रक्त का संचार बाएं चेंबर से दाएं चेंबर की तरफ होना चाहिए, जिसे लेफ्ट टू राइट संट कहते है।
-दिल में छेद होने पर समान्यता बच्चे का रंग नीला पड़ जाता है। जिसमें शरीर और चेहरे के अलावा जीभ, नाखून और होंठ भी नीले हो जाते हैं। इस बीमारी में बच्चे कई बार बेहोश भी हो जाते हैं और उनका वजन कम होने लगता है।
-इसी तरह नवजात शिशु को दिल में छेद होने पर उसे दूध पीने में परेशानी, दूध पीते हुए पसीना या वजन कम होना और जल्दी थक जाना, बार-बार निमोनिया होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
मुफ्त हुआ सवा लाख रुपए वाला ऑपरेशन
-डॉ. अम्बरीष कुमार के अुनसार, बच्ची का ऑपरेशन राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत हुआ। इसमें दिल की गंभीर बीमारी से पीड़ित 19 साल के गरीब बच्चों के मुफ्त ऑपरेशन का नियम है। बच्ची का ऑपरेशन पूरी तरह से फ्री हुआ है। वहीं किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में इस ऑपरेशन पर कम से 6 से 7 लाख रुपए का खर्च आता।

ऐसे हुआ ऑपरेशन

– सबसे पहले बच्ची को एनस्थीसिया दी गई। उसके बाद मासूम के दिल और फेफड़े की खून की सप्लाई को बंद कर उसे हार्ट एंड लंग मशीन का सहारा दिया गया। उसके बाद मशीन के जरिए खून की सप्लाई पूरे शरीर में शुरू की गई।
-उसके बाद दिल की पीडीए (पेटेंट डक्टस आर्टीओसेस) यानी कि जिस जगह पर सुराख था उसे हिस्से को धागे से बांधा गया। उसके बाद खून के बहाव को रोकने के लिए वीएसडी (वैंट्रीक्यूलर सैप्ट्रल डिफेक्ट) के जरिये सुराख को बंद किया गया। फ‍िर फेफड़े को अधिक खून सप्लाई करने वाली एएसडी आर्टियल सैप्ट्रल डिफेक्ट) में सुराख को बंद किया गया।

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