Breaking News

आवश्यक सूचना: प्रदेश जागरण के सभी निर्गत परिचय पत्र निरस्त किये जा चुके हैं | अगस्त 2022 के बाद के मिलने या दिखने वाले परिचय पत्र फर्जी माने जाएंगे |

इजरायल में दिखी सच्ची दोस्ती

06_07_2017-5tarun_vijayआजादी के बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री की ऐसी विदेश यात्रा कभी नहीं हुई जिसमें दो हजार वर्षों पुराने संबंध, 70 वर्षों की प्रतीक्षा और 25 वर्षों के राजनयिक संबंधों का पुट, अभूतपूर्व रोमांच और कौतुहल मिश्रित उत्साह सिमटा हुआ दिखा हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल की यात्रा पर जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, यह बात ही चकित करती है, क्योंकि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जिसने दुनिया भर से ठुकराए हुए यहूदियों को दो हजार साल पहले शरण दी। यहां यहूदी समाज इतना घुलमिल गया कि उसने देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा भी अभी दो वर्ष पहले दिया गया है जिसका सिवाय महाराष्ट्र के कहीं कार्यान्वयन नहीं हुआ है। इजरायल का जन्म 1948 में हुआ। भारत ने 17 सितंबर, 1950 को उसे मान्यता दी, लेकिन अरब देशों से संबंध न बिगड़ें, इस आशंका से 1992 तक इजरायल से हमारे राजनयिक रिश्ते नहीं बने। बावजूद इसके 1962, 1965 और 1971 के युद्धों और कारगिल संघर्ष में इजरायल ने भारत की मदद की, जबकि मुस्लिम देशों ने खासकर तेल उत्पादक अरब देशों ने कश्मीर और अन्य मुद्दों पर कभी भी भारत का साथ नहीं दिया, बल्कि पाकिस्तान समर्थक नीति अपनाई। 
ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में (740-722 ईसा पूर्व) असीरिया ने इजरायल पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया था। तबसे यहूदियों का इतिहास विस्थापन, यातनाओं, बंदी शिविरों, नस्लीय नरसंहार, भेदभाव और हिटलर के गैस चैंबरों में तड़प-तड़प कर मरने का रहा है। भारत का हिंदू समाज ऐसा था जिसने यहूदियों को बराबरी का दर्जा, सम्मान और वास्तविक अपनापन दिया। प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की साम्राज्य के शिकंजे से इजरायली भूमि के हाइफा नगर को मुक्त कराने में भारतीय सैनिकों ने निर्णायक भूमिका निभाई। नई दिल्ली का महत्वपूर्ण ‘तीन मूर्ति चौक’ उसी विजय की याद में बना है जिसे मोदी शासन ने अब हाइफा चौक नाम दिया है। भारत के हिंदुओं को यहूदी समाज के साथ अपनापन एवं मानस बंधु जैसा रिश्ता लगना स्वाभाविक है। यहूदियों ने भारतीय नाम, यहां तक कि जातिगत उपनाम, खानपान, वेशभूषा ही नहीं अपनाई, बल्कि सेना, साहित्य, कला, विज्ञान में भी अप्रतिम योगदान दिया। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के नायक लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब यहूदी थे। अन्य सेना नायकों में वायस एडमिरल बेंजामिन सैम्सन किलेकर प्रसिद्ध हुए। यहूदी समाज ने बैंक ऑफ इंडिया स्थापित किया, मुंबई विश्वविद्यालय का भव्य पुस्तकालय बनाया, मुंबई का सैसून बंदरगाह बनाया।

‘गेट-वे ऑफ इंडिया’ भी एक तरह से यहूदियों की देन है। यहूदियों पर दुनिया भर में जो भयानक अत्याचार हुए उनमें हमें विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत में कत्लेआम, मंदिरों का ध्वंस, धर्मांतरण और यातनाओं की छवि दिखती है। इजरायल 14 मई, 1948 को अस्तित्व में आया, लेकिन सिर्फ 24 घंटों के भीतर ही उस पर मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक की फौजों ने एक साथ आक्रमण कर दिया। वह युद्ध 15 महीने चला और अंतत: इजरायल जीता। वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बेन गुरियन ने दो हजार वर्ष से प्रयुक्त न हो रही हिब्रू भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का साहस दिखाया। फिर दुनिया भर में बिखरे यहूदी इजरायल आए। चारों तरफ से आक्रामक अरब देशों से घिरा इजरायल आज ज्ञान, विज्ञान, टेक्नोलॉजी, साइबर विज्ञान, सुरक्षा और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में विश्व का प्रथम श्रेणी का देश बन गया है। 
सिर्फ 85 लाख की जनसंख्या और 20,770 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला इजरायल रक्षा, गुप्तचर यंत्रों, रडार, प्रक्षेपास्त्र निर्माण ही नहीं, बल्कि कृषि डेयरी उत्पादन के क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व कर रहा है। आतंकवाद के खिलाफ गुप्तचर सूचनाएं और महत्वपूर्ण सामरिक मदद इजरायल से ही मिल रही है। राजस्थान में रेगिस्तानी क्षेत्रों को हरा-भरा कर वहां खेती और फलों के उत्पादन में मदद पहुंचा कर इजरायल ने भारत में बहुत बड़ा योगदान दिया है। 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बावजूद कांग्रेस सरकारें वोट बैंक की राजनीति और अरब देशों की नाराजगी के भय से इजरायल से संबंध बढ़ाने में हिचकिचाती रहीं, जबकि इजरायल बिना संकोच लगातार भारत की सहायता करता रहा। केंद्र में मोदी सरकार के बाद इजरायल से संबंध प्रगाढ़ हुए। 2015 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इजरायल यात्रा पर गए। इसके बाद वहां के राष्ट्रपति भी भारत की यात्रा पर आए। मोदी सरकार ने इजरायल के साथ सर्वाधिक सामरिक समझौते किए हैं तो प्रौद्योगिकी स्थानांतरण की नीति के तहत भारत के ‘मेक इन इंडिया’अभियान को इजरायल का साथ मिला है। इसमें विनाशकारी मारक क्षमता वाली बराक-1 प्रक्षेपास्त्र प्रतिरोधक सिस्टम, 8356 एंटी टैंक गाइडेड प्रक्षेपास्त्र स्पाइक और 321 प्रक्षेपास्त्र लांचर शामिल हैं। इसके अलावा तीन अरब डॉलर मूल्य के अवाक्स रडार सिस्टम, जमीन से हवा में मार करने वाले स्पायडर प्रक्षेपास्त्र खरीदने और डीआडीओ के साथ अनेक स्तरों पर रक्षा उत्पादन के महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। आगे ऐसे और समझौते प्रस्तावित हैं। प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में इजरायल जिस तरह उत्साहित दिखा और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने जिस प्रकार यह तय किया कि वह मोदी की यात्रा के हर पड़ाव में उनके साथ रहेंगे वह भारत की अहमियत को दर्शाता है। इजरायली जनता के उत्साह का पता इससे चलता है कि वहां के टैक्सी और परिवहन चालक संगठनों ने मोदी के स्वागत में आने वाले इजरायलियों के लिए मुफ्त सेवा की घोषणा की है। 
भारत से महाराष्ट्र और अन्य प्रांतों से यहूदी मोदी के स्वागत के लिए तेल अवीव पहुंचे हैं। दुनिया के किसी देश में एक विदेशी अतिथि के आगमन पर उसका इतना रोमांच भरा स्वागत शायद ही हुआ हो। अत्यंत आत्मीय एवं भरोसे योग्य इजरायल के साथ ऐसे संबंध बनाने में सात दशकों का समय लगा तो इसका एकमात्र कारण छद्म सेक्युलरवाद रहा। भारत अरब देशों के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है। फलस्तीन के प्रति भारत की नीति बदली नहीं है। मई में फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भारत की सफल यात्रा की। इसके पहले मोदी की सऊदी अरब यात्रा बहुत सफल रही थी। मोदी के नेतृत्व में ईरान सहित खाड़ी के मुस्लिम देशों से भारत के रिश्ते बेहतर हुए हैं। इजरायल से संबंधों की प्रगाढ़ता का अर्थ किसी अन्य देश से संबंध कम करना नहीं है। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और कृषि के लिए संप्रभु राष्ट्र के नाते स्वतंत्र नीति पहली बार अपनाने का कदम उठा रहा है। इसके लिए मोदी सरकार को साधुवाद। देर आयद, दुरुस्त आयद।
आजादी के बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री की ऐसी विदेश यात्रा कभी नहीं हुई जिसमें दो हजार वर्षों पुराने संबंध, 70 वर्षों की प्रतीक्षा और 25 वर्षों के राजनयिक संबंधों का पुट, अभूतपूर्व रोमांच और कौतुहल मिश्रित उत्साह सिमटा हुआ दिखा हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल की यात्रा पर जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, यह बात ही चकित करती है, क्योंकि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जिसने दुनिया भर से ठुकराए हुए यहूदियों को दो हजार साल पहले शरण दी। यहां यहूदी समाज इतना घुलमिल गया कि उसने देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा भी अभी दो वर्ष पहले दिया गया है जिसका सिवाय महाराष्ट्र के कहीं कार्यान्वयन नहीं हुआ है। इजरायल का जन्म 1948 में हुआ। भारत ने 17 सितंबर, 1950 को उसे मान्यता दी, लेकिन अरब देशों से संबंध न बिगड़ें, इस आशंका से 1992 तक इजरायल से हमारे राजनयिक रिश्ते नहीं बने। बावजूद इसके 1962, 1965 और 1971 के युद्धों और कारगिल संघर्ष में इजरायल ने भारत की मदद की, जबकि मुस्लिम देशों ने खासकर तेल उत्पादक अरब देशों ने कश्मीर और अन्य मुद्दों पर कभी भी भारत का साथ नहीं दिया, बल्कि पाकिस्तान समर्थक नीति अपनाई। ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में (740-722 ईसा पूर्व) असीरिया ने इजरायल पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया था। तबसे यहूदियों का इतिहास विस्थापन, यातनाओं, बंदी शिविरों, नस्लीय नरसंहार, भेदभाव और हिटलर के गैस चैंबरों में तड़प-तड़प कर मरने का रहा है। भारत का हिंदू समाज ऐसा था जिसने यहूदियों को बराबरी का दर्जा, सम्मान और वास्तविक अपनापन दिया। प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की साम्राज्य के शिकंजे से इजरायली भूमि के हाइफा नगर को मुक्त कराने में भारतीय सैनिकों ने निर्णायक भूमिका निभाई। नई दिल्ली का महत्वपूर्ण ‘तीन मूर्ति चौक’ उसी विजय की याद में बना है जिसे मोदी शासन ने अब हाइफा चौक नाम दिया है। भारत के हिंदुओं को यहूदी समाज के साथ अपनापन एवं मानस बंधु जैसा रिश्ता लगना स्वाभाविक है। यहूदियों ने भारतीय नाम, यहां तक कि जातिगत उपनाम, खानपान, वेशभूषा ही नहीं अपनाई, बल्कि सेना, साहित्य, कला, विज्ञान में भी अप्रतिम योगदान दिया। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के नायक लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब यहूदी थे। अन्य सेना नायकों में वायस एडमिरल बेंजामिन सैम्सन किलेकर प्रसिद्ध हुए। यहूदी समाज ने बैंक ऑफ इंडिया स्थापित किया, मुंबई विश्वविद्यालय का भव्य पुस्तकालय बनाया, मुंबई का सैसून बंदरगाह बनाया।

‘गेट-वे ऑफ इंडिया’ भी एक तरह से यहूदियों की देन है। यहूदियों पर दुनिया भर में जो भयानक अत्याचार हुए उनमें हमें विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत में कत्लेआम, मंदिरों का ध्वंस, धर्मांतरण और यातनाओं की छवि दिखती है। इजरायल 14 मई, 1948 को अस्तित्व में आया, लेकिन सिर्फ 24 घंटों के भीतर ही उस पर मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक की फौजों ने एक साथ आक्रमण कर दिया। वह युद्ध 15 महीने चला और अंतत: इजरायल जीता। वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति बेन गुरियन ने दो हजार वर्ष से प्रयुक्त न हो रही हिब्रू भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का साहस दिखाया। फिर दुनिया भर में बिखरे यहूदी इजरायल आए। चारों तरफ से आक्रामक अरब देशों से घिरा इजरायल आज ज्ञान, विज्ञान, टेक्नोलॉजी, साइबर विज्ञान, सुरक्षा और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में विश्व का प्रथम श्रेणी का देश बन गया है। सिर्फ 85 लाख की जनसंख्या और 20,770 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला इजरायल रक्षा, गुप्तचर यंत्रों, रडार, प्रक्षेपास्त्र निर्माण ही नहीं, बल्कि कृषि डेयरी उत्पादन के क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व कर रहा है। आतंकवाद के खिलाफ गुप्तचर सूचनाएं और महत्वपूर्ण सामरिक मदद इजरायल से ही मिल रही है। राजस्थान में रेगिस्तानी क्षेत्रों को हरा-भरा कर वहां खेती और फलों के उत्पादन में मदद पहुंचा कर इजरायल ने भारत में बहुत बड़ा योगदान दिया है। 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बावजूद कांग्रेस सरकारें वोट बैंक की राजनीति और अरब देशों की नाराजगी के भय से इजरायल से संबंध बढ़ाने में हिचकिचाती रहीं, जबकि इजरायल बिना संकोच लगातार भारत की सहायता करता रहा। केंद्र में मोदी सरकार के बाद इजरायल से संबंध प्रगाढ़ हुए। 2015 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इजरायल यात्रा पर गए। इसके बाद वहां के राष्ट्रपति भी भारत की यात्रा पर आए। मोदी सरकार ने इजरायल के साथ सर्वाधिक सामरिक समझौते किए हैं तो प्रौद्योगिकी स्थानांतरण की नीति के तहत भारत के ‘मेक इन इंडिया’अभियान को इजरायल का साथ मिला है। इसमें विनाशकारी मारक क्षमता वाली बराक-1 प्रक्षेपास्त्र प्रतिरोधक सिस्टम, 8356 एंटी टैंक गाइडेड प्रक्षेपास्त्र स्पाइक और 321 प्रक्षेपास्त्र लांचर शामिल हैं। इसके अलावा तीन अरब डॉलर मूल्य के अवाक्स रडार सिस्टम, जमीन से हवा में मार करने वाले स्पायडर प्रक्षेपास्त्र खरीदने और डीआडीओ के साथ अनेक स्तरों पर रक्षा उत्पादन के महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। आगे ऐसे और समझौते प्रस्तावित हैं। प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में इजरायल जिस तरह उत्साहित दिखा और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने जिस प्रकार यह तय किया कि वह मोदी की यात्रा के हर पड़ाव में उनके साथ रहेंगे वह भारत की अहमियत को दर्शाता है।

इजरायली जनता के उत्साह का पता इससे चलता है कि वहां के टैक्सी और परिवहन चालक संगठनों ने मोदी के स्वागत में आने वाले इजरायलियों के लिए मुफ्त सेवा की घोषणा की है। भारत से महाराष्ट्र और अन्य प्रांतों से यहूदी मोदी के स्वागत के लिए तेल अवीव पहुंचे हैं। दुनिया के किसी देश में एक विदेशी अतिथि के आगमन पर उसका इतना रोमांच भरा स्वागत शायद ही हुआ हो। अत्यंत आत्मीय एवं भरोसे योग्य इजरायल के साथ ऐसे संबंध बनाने में सात दशकों का समय लगा तो इसका एकमात्र कारण छद्म सेक्युलरवाद रहा। भारत अरब देशों के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है। फलस्तीन के प्रति भारत की नीति बदली नहीं है। मई में फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भारत की सफल यात्रा की। इसके पहले मोदी की सऊदी अरब यात्रा बहुत सफल रही थी। मोदी के नेतृत्व में ईरान सहित खाड़ी के मुस्लिम देशों से भारत के रिश्ते बेहतर हुए हैं। इजरायल से संबंधों की प्रगाढ़ता का अर्थ किसी अन्य देश से संबंध कम करना नहीं है। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और कृषि के लिए संप्रभु राष्ट्र के नाते स्वतंत्र नीति पहली बार अपनाने का कदम उठा रहा है। इसके लिए मोदी सरकार को साधुवाद। देर आयद, दुरुस्त आयद।

Leave a Reply

Your email address will not be published.