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इंफोसिस विवाद : क्या सिक्का चलेंगे मिस्त्री की राह पर?

sikka_1486892375इंफोसिस में जारी उठा-पटक के बीच विशाल सिक्‍का निवेशकों से मुलाकात कर अपनी बात रखेंगे। कार्पोरेट जगत में अब इस बात को लेकर चर्चा गर्म हो गई है कि कहीं इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्का व प्रमुख संस्थापक सदस्यों खासकर एन.आर. नारायण मूर्ति के बीच का विवाद रतन टाटा व साइरस मिस्त्री की राह पर न चल निकले। टाटा समूह के लंबे इतिहास में दागदार बन चुकी टाटा-मिस्त्री के बीच चली कार्पोरेट लड़ाई की बीमारी अब देश की दूसरी बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस की तरफ बढ़ रही है। इस बीच सूत्रों के मुताबिक सोमवार को सिक्का मुंबई में कंपनी के वैश्विक संस्थानक निवेशकों से मुलाकात करने वाले हैं। अब सबकी नजर सोमवार को सिक्का की मुलाकात पर टिकी हुई है। सोमवार को सिक्का निवेशकों के एक समूह से अलग से भी मिलेंगे।
सिक्का व मूर्ति के बीच किसका पलड़ा भारी रहेगा, यह संस्थानक निवशेकों के समर्थन पर निर्भर रहेगा। गौरतलब है कि कंपनी में संस्थापकों (प्रमोटर्स) की हिस्सेदारी मात्र 12.75 फीसदी है जबकि सार्वजनिक हिस्सेदारी 86.74 फीसदी है। कार्पोरेट जगत के विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे में संस्थापकों का स्वतंत्र प्रबंधन पर दबाव डालना कार्पोरेट गवर्नेंस के नियमों के तहत उचित नहीं है। 

क्या है लड़ाई

इंफोसिस के संस्थापक एन.आर. नारायणमूर्ति, क्रिस गोपालकृष्णन व नंदन निलेकणी ने निदेशक मंडल से शिकायत की है कि कंपनी के भीतर कार्पोरेट गवर्नेंस के मानकों का पालन नहीं हो रहा है। सिक्का की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं।

सिक्का के पे-पैकेज (एक करोड़ दस लाख डॉलर सालाना) व सीएफओ राजीव बंसल को दिए जाने वाले  17 करोड़ के सेवरेंस को कंपनी के नियमों के खिलाफ बताया जा रहा है। सेवरेंस की राशि वह रकम है जो कंपनी किसी कर्मचारी को निर्धारित समय से पहले अनुबंध खत्म करने पर देती है और यह अमूमन तीन महीने की होती है, लेकिन  इस नियम की अनदेखी कर कंपनी के पूर्व लीगल हेड केनेडी को 12 महीने तो सीएफओ बंसल को 30 महीने का सेवरेंस पे दिया गया।

मूर्ति ने यह भी कहा है कि सिक्का के काम करने के तौर-तरीकों से कर्मचारियों में रोष हैं और उनके पास इस मामले में ई-मेल के जरिए कर्मचारियों की शिकायतें मिली हैं।  कर्मचारियों के मनोबल पर बुरा असर पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक संस्थापकों और कंपनी के बोर्ड के बीच चल रही आंतरिक लड़ाई के पीछे लगभग पांच अरब डॉलर की नगदी भी है। सूत्रों के मुताबिक कंपनी के संस्थापकों का कहना है कि इस नकदी का इस्तेमाल कंपनी के शेयरधारकों के हित में क्यों नहीं किया जा रहा है।

समाधान कैसे होगा

कार्पोरेट जगत के विशेषज्ञों के मुताबिक सीईओ सिक्का व कंपनी के प्रमोटर्स के बीच सांस्कृतिक मेल भी नहीं है। अधिकतर प्रमोटर्स दक्षिण भारत से हैं तो सिक्का उत्तर भारत से। विशेषज्ञों के मुताबिक फैसले लेने के मामले में सिक्का कंपनी के प्रमोटर्स से अलग तरीके से और युवा तरीके से सोचते हैं।
सिक्का फैसला लेने में आक्रामक दिखते हैं जबकि प्रमोटर्स काफी समय लेकर फैसला लेते हैं। दोनों के बीच कार्य प्रणाली में अंतर मुख्यत: उत्तर भारत व दक्षिण भारत की सांस्कृतिक भिन्नता के कारण भी हैं।इस झगड़े को सुलझाने के लिए कारपोरेट गवर्नेंस विशेषज्ञ सी. अमरचंद मंगलदास को नियुक्त किया गया है। वे प्रमोटर्स व अन्य स्टेकहोल्डर्स से जानकारी जुटाएंगे और फिर बोर्ड को अपनी सिफारिश देंगे। माना जा रहा है कि वह मूर्ति के करीबी है।
 
 

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