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आतंकियों के समर्थकों से हमदर्दी

19_02_2017-18sanjay_guptaपाकिस्तान के सिंध प्रांत में सेहवान में सूफी संत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हुए आत्मघाती हमले के बाद वहां की सेना ने जिस तरह एक दिन में सौ से अधिक आतंकियों को मार गिराया उसके आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि पाकिस्तान की आंखें खुल गई हैं। पाकिस्तानी सेना ने दरगाह में धमाके के बाद जिन सौ आतंकियों को मार गिराने का दावा किया उसके संदर्भ में इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि वे सभी हथियारबंद आतंकी रहे होंगे अथवा उन्होंने ही हमले को अंजाम दिया होगा। आसार इसी के अधिक हैं कि पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई में आतंकियों के समर्थक, हमदर्द और संरक्षक मारे गए होंगे। हैरत नहीं कि इन्हें ही मारकर पाकिस्तानी सेना यह दावा कर रही हो कि उसने बदला ले लिया। वैसे भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि पाकिस्तानी सेना ने चंद घंटों के अंदर इतने आतंकी कहां से खोज निकालें? अब जब पाकिस्तान में आतंकियों के साथ-साथ उनके समर्थकों और संरक्षकों को सेना ने मार गिराया तब फिर यह जरूरी है कि कश्मीर घाटी में आतंकियों के समर्थक चेत जाएं। उन्हें भारतीय सेनाध्यक्ष ने चेताया भी है। उनकी इस चेतावनी में कुछ भी गलत नहीं कि मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों के समक्ष बाधा खड़ी करने वालों को आतंकियों का समर्थक मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। ध्यान रहे पिछले दिनों कश्मीर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना के एक मेजर को इस कारण जान गंवानी पड़ी, क्योंकि उनके घायल होने के बाद जब उन्हें घटनास्थल से निकाला जा रहा था तब आतंकियों के उग्र समर्थकों ने सेना के वाहनों पर पथराव किया। जब तक घायल मेजर को सेना के बेस अस्पताल ले जाया जाता तब तक देर हो चुकी थी। यह इस तरह की एकलौती घटना नहीं है।
कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी सरगना बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से ऐसी तमाम घटनाएं हो चुकी हैं जब उग्र भीड़ ने पुलिस और सेना की कार्रवाई में खलल डाला। कश्मीर में सेना की कार्रवाई के दौरान आतंकियों के पक्ष में नारेबाजी के साथ सुरक्षा बलों के वाहनों पर पथराव होना अब आम बात है। सेना समेत पुलिस एवं सुरक्षा बलों के समक्ष उत्पन्न इस नई चुनौती को देखते हुए ही सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने विगत दिवस यह बयान दिया कि जो लोग भी कश्मीर में इस्लामिक स्टेट अथवा पाकिस्तान का झंडा लहराएंगे या फिर उग्र भीड़ के सहारे सुरक्षा बलों को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने की कोशिश करेंगे उन्हें आतंकी समर्थक तत्व माना जाएगा। आतंकियों का साथ देने वालों से सख्ती से निपटा ही जाना चाहिए, खासकर तब और भी जब वे सुरक्षा बलों को अपना काम न करने दें। कश्मीर में पिछले तीन दशकों से जारी पाकिस्तान प्रायोजित-पोषित आतंकवाद केंद्र की किसी भी सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती रहा है। इस आतंकवाद का सामना करने के लिए कभी नरम और कभी सख्त रवैया अख्तियार किया जाता रहा, लेकिन आतंकवाद पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाने में मदद नहीं मिली। पिछले कुछ समय से स्थितियां और गंभीर दिख रही हैं। पहले तो कश्मीर घाटी में केवल पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगते थे, लेकिन अब
वहां खुलकर आइएस के झंडे भी लहराए
जा रहे हैं। इतना ही नहीं, एक वर्ग भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने से लेकर उनका उपहास उड़ाने और छींटाकशी करने से भी बाज नहीं आता। यह सब सुरक्षा बलों को उकसाने के लिए किया जाता है ताकि कश्मीर का माहौल खराब करने में आसानी हो। दुर्भाग्य से सुरक्षा बलों को पत्थरबाजी के साथ-साथ कुछ राजनीतिक दलों की वोट बैंक आधारित सस्ती राजनीति से भी जूझना पड़ रहा है। अलगाववाद की राह पर चल रहे कश्मीरियों को अब तक यह समझ आ जाना चाहिए कि भारत न तो उनकी आजादी की बेतुकी मांग मानने वाला है और न ही पाकिस्तान के दखल को सहन करने वाला है। घाटी के लोगों का हित इसी में है कि वे पाकिस्तान परस्त तत्वों के बहकावे में न आएं और उन लोगों से सचेत रहें जो आतंकवाद के सहारे आजादी का स्वप्न देख रहे हैं। अलगाववादी किस तरह कश्मीरी जनता से छल कर रहे, यह इससे समझा जा सकता है कि उनके अपने बच्चे तो विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं और वे दूसरों के बच्चों को पत्थरबाज बना रहे हैं। पाकिस्तान भले ही सेहवान में लगभग सौ लोगों की जान लेने वाले बम धमाके के बाद आतंकवाद के खिलाफ सख्त दिख रहा हो, लेकिन आतंकी संगठनों के मामले में उसका दोहरा रवैया किसी से छिपा नहीं। वह अपने लिए खतरा बनने वाले आतंकियों से तो सख्ती से निपट रहा है, लेकिन उन्हें खुली छूट दे रहा है जो भारत या फिर अफगानिस्तान को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वह इन आतंकी तत्वों की हरसंभव मदद भी कर रहा है। यही तत्व कश्मीर में अशांति फैला रहे हैं। अशांति और आतंक को बढ़ावा देकर कश्मीर को विवादित क्षेत्र साबित करना पाकिस्तान की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का राग अलापने के साथ-साथ पाकिस्तान लश्कर और जैश के आतंकियों की कश्मीर में घुसपैठ भी करा रहा है। इसी कारण सीमा पर शांति भंग होती रहती है।
जनरल बिपिन रावत के बयान पर अन्य दलों के साथ कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह ऐतराज जताया उसकी निंदा ही की जा सकती है। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं कि जिस कांग्रेस से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर संयत रहेगी वह उस पर ही संकीर्ण राजनीति करना पसंद कर रही है। आखिर यह कैसे हो सकता है कि जो लोग आतंकियों का खुलेआम समर्थन करें उनके प्रति सेना नरमी बरते। क्या कांग्र्रेस शासित राज्यों में पाकिस्तान अथवा आइएस के झंडे लहराए जाने पर पुलिस कुछ नहीं करेगी? अच्छा हो कि कांग्र्रेस यह समझे कि कोई भी आतंकी संगठन बिना स्थानीय समर्थन के सक्रिय नहीं रह सकता। आज अगर सुरक्षा बलों को कश्मीर में आतंकवाद से निपटने में मुश्किल हो रही है तो इसका कारण यही स्थानीय समर्थन है। अगर आतंकवाद के मामले में भी राजनीतिक दल वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति करेंगे तो इससे न केवल सुरक्षा बलों का मनोबल टूटेगा, बल्कि देश की जगहंसाई भी होगी। एक ऐसे समय जब पूरा विश्व आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो रहा और उसकी जड़ों को समाप्त करने पर सोच-विचार कर रहा है तब भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत को इसलिए और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि दुनिया धीरे-धीरे इस नतीजे पर पहुंच रही है कि विश्व जिस आतंकवाद से जूझ रहा है उसका केंद्र पश्चिम एशिया के साथ-साथ पाकिस्तान भी है। इन स्थितियों में यह आवश्यक है कि हमारे राजनीतिक दल सुरक्षा के सवाल पर एक-दूसरे पर छींटाकशी करने के बजाय एकजुट दिखें। नहीं तो न केवल कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के पाकिस्तान मंसूबे सफल होंगे, बल्कि विश्व को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की भूमिका पर भी संशय होगा।

 

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