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अलग-अलग नावों की पतवार थामते नजर आ रहे मुलायम-अखिलेश

समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सेठ और गायत्री प्रजापति की कोशिशों के बाद मुलायम और अखिलेश ने करीब डेढ़ घंटे तक बातचीत की। वार्ता की मध्यस्थता करने वालों को उम्मीद है कि सब साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन सूत्र बताते हैं कि मुलायम और अखिलेश के अलग-अलग नावों की पतवार थाम लेने की संभावना ज्यादा है। अमर उजाला से बातचीत में संजय सेठ ने कहा कि अगले एक दो दिन में मामला सुलझ जाने के पूरे आसार हैं। वह कोशिश में लगे हैं।mulayam-singh-yadav_1482993408
 
अखिलेश चाहते हैं कि प्रो. राम गोपाल यादव द्वारा बुलाए गए अधिवेशन को नेता जी जायज मानकर अपनी नाराजगी वापस ले लें। वह मई 2017 तक के लिए ही सही अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहने दें। वहीं नेता जी चाहते हैं कि उन्हें अध्यक्ष पद पर बने रहने दिया जाए। जीवित रहते उनकी फोटो पर माला न पहनायी जाए। सूत्र बताते हैं कि पिता और पुत्र ने एक दूसरे को भरपूर भरोसा दिलाने की कोशिश की। इस दौरान आपसी रिश्ते, भावनाएं सब उमड़ी, लेकिन दोनों के सामने अपना-अपना भविष्य दीवार बना हुआ है।

समाजवादी पार्टी के अन्य सूत्र का कहना है कि मुलायम और अखिलेश दोनों को वास्तविकता से दूर ले जाने वालों की कमी नहीं है। ऐसा लग रहा है कि दोनों के बीच न केवल गलतफहमी पैदा की जा रही है, बल्कि उन्हें डराया भी जा रहा है। पार्टी के एक अन्य दोनों पक्षों के करीबी पदाधिकारी ने बताया कि इस समय मुलायम अपनी सारी नाराजगी को किनारे रख चुके हैं। उन्होंने अखिलेश के सामने पार्टी का भावी मुख्यमंत्री होने का प्रस्ताव दिया। भरपूर भरोसा देने की कोशिश की। यही स्थिति अखिलेश की भी है। लेकिन पिता-पुत्र के बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा एक-दो मुद्दों पर और राय नहीं बन पा रही है। आजम खां का भी मानना है कि संकट के बादल छंटे नहीं है। सुलह की गुंजाइश भी लगातार घटती जा रही है।

13 जनवरी को मुलायम और अखिलेश गुट को चुनाव आयोग में अपनी-अपनी स्थिति साफ करनी है। उपस्थित होना है। अभी मुलायम और अखिलेश के नेतृत्व वाले प्रो. रामगोपाल, नरेश अग्रवाल, नीरज शेखर के गुट (दोनों गुटों) ने समाजवादी पार्टी, इसके बैंक खाते, चुनाव चिन्ह, पार्टी कार्यालय पर अपना-अपना दावा जताया है।

यदि इससे पहले दोनों गुट आपस में रजामंदी का प्रार्थनापत्र दे देते हैं तो ठीक, वरना 17 जनवरी तक चुनाव आयोग समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह और नाम को फ्रीज करके दोनों गुटों को अलग-अलग नाम तथा चुनाव चिन्ह देने की पहल कर सकता है।

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