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प्रदूषण से राजस्थान में बढ़ रहे सिलिकोसिस मरीज, यहां रोज करना पड़ता है 400 रु. की सांसों का जुगाड़

राजधानी जयपुर में प्रदूषण का मीटर दिनों-दिन बढ़ रहा है। पटाखों से यहां की आवोहवा और जहरीली हो गई। प्रदेश में जहां पेड़-पौधों की कमी है, वहां साफ ऑक्सीजन की कमी नजर आ रही है।

बाड़मेर में देखें तो पत्थर के कण सांस में ऐसे घुले कि अब हर सांस दम घोटती महसूस हो रही है। प्रतिदिन 400 रुपए हों तो जीवन की डोर चले। दरअसल, इन्हें सांस लेने के लिए रोज दो ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए, लेकिन अब हालत ऐसी भी नहीं कि 400 रुपए का जुगाड़ कहीं से हो जाए। आस-पास से मदद लेकर इलाज करवाया।

आर्थिक स्थिति भी इतनी कमजोर कि अब इलाज करवाना भी संभव नहीं रहा। यह स्थिति है शहर के वार्ड १३ के जटियों का नया वास में रहने वाले दूदाराम की। सिलिकोसिस पीडि़त दूदाराम ने जब पत्थर की घसाई का काम शुरू किया तो परिवार के सदस्यों को लगा कि दो जून की रोटी का इंतजाम हो गया। धीरे-धीरे पत्थर के बारीक कण फेंफड़ों में ऐसे जमे कि अब सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।

परिवार के सदस्यों ने इलाज के लिए घरेलू सामान तक बेच दिया। अब पैसे नहीं होने के कारण इलाज बंद है। वहीं पहचान वालों से उधार लिए गए रुपए चुकाना मुश्किल हो गया है।

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सांस में तकलीफ होने के कारण अब घर पर ही दूदाराम को ऑक्सीजन देनी पड़ती है। ऑक्सीजन के दो सिलेंडर प्रतिदिन उसकी जरूरत हो गए हैं। ऐसे में परिवार के लिए अब प्रतिदिन 400 रुपए की ऑक्सीजन जुटाने व दवा के पैसों का जुगाड़ करना भारी पड़ रहा है।

बेटियों की पढ़ाई छूटी

पीडि़त की बड़ी बेटी सोनू व छोटी भावना की पढ़ाई परिवार की माली हालत खराब होने से छूट गई। हालांकि, तीसरी बेटी बबलू व गुड्डी सरकारी विद्यालय जाती है। सबसे छोटा बेटा मांगीलाल भी नजदीक की स्कूल में पढ़ाई कर रहा है। कमाई का स्थायी जरिया नहीं होने से परिवार की रोजी-रोटी की व्यवस्था व ऑक्सीजन के लिए पैसे जुटाना मुश्किल हो रहा है।

नहीं मिली सरकारी मदद

पीडि़त को अभी तक न तो सरकारी मदद मिली और ना ही परिवार का बीपीएल कार्ड बना है। सरकार की ओर से सिलिकोसिस पीडि़त को मिलने वाली मदद भी नहीं मिलने से अब गुजारा भी नहीं हो रहा है।

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